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________________ १०९ श्रामण्योपनिषद् सत्यधर्मः असत्य-दूरगं सत्यं वाचा सर्व-हितावहम् । पूजया परया भक्त्या पूजयामि तदाप्तये ॥१॥ ॐ हीं परब्रह्मणे सत्यधर्मांगाय नमः जलाद्ययं निर्वपामीति स्वाहा । दय-धम्महु कारणु दोस-णिवारणु इह-भवि पर-भवि सुक्खयरु। सच्चु जि वयणुल्लउ भुवणि अतुल्लउ बोलिज्जइ वीसासधरु ॥२॥ सच्चु जि सव्वहं धम्महं पहाणु, सच्चु जि महियलि गरुउ विहाणु । सच्चु जि संसार-समुद्द-सेउ, सच्चु जि सव्वहं मण-सुक्ख-हेउ ॥३॥ सच्चेण जि सोहइ मणुव-जम्मु, सच्चेण पवित्तउ पुण्ण-कम्मु । सच्चेण सयल गुण-गण महंति, सच्चेण तियस सेवा वहति ॥४॥ सच्चेण अणुव्वय-महव्वयाई, सच्चेण विणासइ आवयाई । हिय-मिय भासिज्जइ णिच्च भास, ण वि भासिज्जइ पर-दुह-पयास ॥५॥ पर-बाहा-यरु भासहु म भव्वु, सच्चु जि तं छंडहु विगय-गव्यु । सच्चु जि परमप्पउ अत्थि इक्कु, सो भावहु भव-तम-दलण-अक्कु ॥६॥ रुधिज्जइ मुणिणा वयण-गुत्ति, जं खणि फिट्टइ संसार-अत्ति ॥७॥
SR No.022076
Book TitleShramanyopnishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanbodhisuri
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year2010
Total Pages144
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size25 MB
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