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________________ १८४ सटीकश्रावकप्रज्ञस्याख्यप्रकरणं। योगाः|३|३३ २ २/२|१|१|१| करणानि ३ |२|१|३|२|१|३|२|१ | १ | ३ | ३ | ३ | ९ / ९/३/९/९ कात्र भावना न करेइ न कारवेइ करतंपि अन्नं न समणुजाणइ मणेणं वायाए काएणएको भेओ। इयाणि बिइओ ण करेइन कारवेइ करतंपिअन्नं न समणुजाणइ मणेणं वायाए एको, मणेणं काएण, तहा वायाए काएणबीओमूलभेओ गओ ।२। इयाणिं तइयओ, ण करेइ ण करावेइ करतं पि अन्नं न समणुजाणइ मणेणं, वायाए ?, काएणं ।।३। इदानीं चतुर्थः न करेइ न कारवेइ मणेणं वायाए काएणं, ण करेइ करतं पि नाणुजाणइ ३, ण कारवेइ करतं पि नाणुजाणइ तइओ, चउत्थो मूलभेओ।४। इदानीं पंचमो, न करेइ न कारवेइ मणेणं वायाए एक्को न करेइ करतं नाणुजाणइ ३, ण कारवेइ करतं नाणुजाणइ ३, एए तिन्नि वि भंगा मणेणं वायाए लद्धा; अन्ने वि तिन्नि मणेणं काएण य एवमेव लभंति तहा अवरे वि वायाए कारण य लब्भंति १७६८१, एवमेव एते सवे नव, पंचमोऽप्युक्तो मूलभेदः।५।इयाणि छट्ठो,ण करेइण कारवेइ मणेणं एको, तहाण करेइ करतं पि नाणुजाणइ मणेणं ३, ण कारवेइ करतं नाणुजाणइ मनसैव तृतीयः। एवं वायाए ३४५४कारण य स वे नव, उक्तो षष्ठो मूलभेदः।६। इदानीं सप्तमोऽभिधीयते, ण करेइ मणेणं वायाए कारण य एक्को ३१, एवं ण कारवेइ मणाईहिं ३, करतं णाणुजाणइइदानीमष्टमो भण्यते न करेइमणेण वा
SR No.022058
Book TitleShravak Pragnapti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKeshavlal Premchandra
PublisherNirnaysagar Press
Publication Year1905
Total Pages228
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size14 MB
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