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________________ (६२) ॥ रत्नसार ॥ श्रावै छै. ए भाव. - ९०. हिवै सिद्ध ना जीव ने अनंता गुण छै ते सम रूपै छै कि विषम ते नेउमो प्रश्नः- तन्नोत्तरं-निरावर्ण आसरी सम गुण छै,पण आप आपणा गुण ना पर्याय धर्म आसरी विषम रूपै छै. ए भाव. ९१. सिद्ध नें जीव कहिये ते कुण हेतु ते इकाणुमो प्रश्नः- जीव तो प्राणै वते जीवै ते जीव, ते सिद्ध ने तो प्राण नथी. ते माटे सूत्र मध्ये ( सिद्धा जीवा ) का ते केम घटै ? तत्रोत्तरं-सिद्ध ने द्रव्य प्राण नथी. सिद्ध ते भाव प्राणै जीवै छै. ते माटे ( सिद्धा जीवा)कहिये ते भाव प्राणी कह्या.अनंत ज्ञान प्राण, १ अनन्त दर्शन प्राण २ अनन्त सुख प्राण ३अनन्त वीर्य प्राण ४ ए च्यार भावै प्राणी जीवे छै. ते माटे सिद्ध ने जीव कहिये. ए भाव प्राण आवरणे द्रव्य प्राण ते कर्म जनित कहिये ते किम ? स्वभाविक दर्शन प्राण ने आवरणे इंद्री प्राण नीपना. स्वभाविक ज्ञान प्राण आवरणे स्वासोवास प्राण नीपजै. स्वाभाविक
SR No.022052
Book TitleRatnasar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Nihalchand Shravak
PublisherTarachand Nihalchand Shravak
Publication Year1899
Total Pages332
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size14 MB
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