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________________ ( ६ ) ॥ रत्नसार ॥ ५ अने पुन्य क्रिया ते सेवना कालै श्रत्यादरें सेववी पण तेहना फल नी वांछा न करवी. तेह नो रहस्य श्यो ? जे पुण्य क्रिया शुभ व्यापारै शुभ योगे न आदरै तो मार्ग विरुद्ध थाइ परम्पराये पण वीतराग मार्गे न जोड़ाई अने जो पुण्य ना फल नी वांछा करै तो निदान रूप मिथ्यात्व प्रणमे. जो सहज रूप शुभ क्रिया करै तो कर्म नो काटनिवारी शीघ्र मुक्तिपद पामै ए रहस्यं. ६ छठा प्रश्न मध्ये हेय, ज्ञेय, उपादेय शब्द नो भावार्थ लिखिये छै - समभावै हेय १, यप्तार्थे ( यथार्थ ) ज्ञेय, २ स्वरूपे उपादेय ३ ए रीते जाणवूं. वली गीतार्थ पासे एह नो विशेष अर्थ धारवो । इति ७ हिवै श्री उवाई सूत्र मध्ये तप ना भेद विशेष कह्या छै, तिहां काउसगा द्रव्य १ भाव २ बे प्रकार को छै. तिहां द्रव्य काउसग ४ च्यार प्रकार ना कह्या छै- प्र - प्रथम शरीर काउसग १ उपधि काउसग २ भात ३ पाणी नो ४ . त्यागते पण काउसग तथा, भाव काउसग ते ३ तिन प्रकार नो- कषाय काउसग १ संसार काउसग २
SR No.022052
Book TitleRatnasar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Nihalchand Shravak
PublisherTarachand Nihalchand Shravak
Publication Year1899
Total Pages332
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size14 MB
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