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________________ ॥ गाथार्थ ॥ (११) १२१वें प्रश्न में ‘दसण मोहे' इत्यादि गाथा श्राई है उस का अर्थः.. दर्शन मोहनी थी सम्यक्त परिसह उपजे. ज्ञानावरणी थी प्रज्ञा परिसह और अज्ञान परिसह उपजे. अंतराय थी अलाभ परिसह उपजे, चारित्र मोहनी थी आक्रोश १ अरती २ स्त्री परिसह ३ निसिद्या प, ४ अचेल प०५ याचना प० ६ सत्कार प. ७ ए सात उपजे. वेदनी थी क्षुधा १ तृषा २ शीत ३ उष्ण ४ दंश प०५ चरिया प. ६ सिद्या ७ जल्ल ८ बध प० ९ रोग १० तृण फास ११ ए इग्यारे परिसह उपजे. १५१ वे प्रश्न में 'सीहत्ताए' इत्यादिक गाथा आई है उस का अर्थः सींह पणे निकल्यो सीह पणे बिचरे जैसे जंबू थूल भद्र,सींह पणे निकल्यो सियाल पठे विचरे कच्छादिक नी परे. सियाल पठे निकल्यो सीह पणे विचरे . मातार्यादिक पठे. सियाल पठे निकल्यो सियाल पठे विचरे.
SR No.022052
Book TitleRatnasar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Nihalchand Shravak
PublisherTarachand Nihalchand Shravak
Publication Year1899
Total Pages332
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size14 MB
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