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________________ ॥ रत्नसार ॥ (१२३) ते एक सौ साठमो प्रश्नः-कोई भौगवै छै. कोई इम कहेतां जे परिणामै बांधै छै ते परिणाम भोगवतो नथी करतो नथी अने भोगवतो नथी ते इयुं ? जे निश्चय नये आत्मा अबंध छै, ___ करै छै भोगवै छै ते श्युं ? व्यवहार नये आत्मा कर्ता भोक्ता है. हिवै ३ त्रण आत्मा नो स्वरूप लिखिये छै. आत्मा त्रण प्रकारे. ते आत्मा नो स्वरूप सम्यक् दृष्टीये धारवो. जिम थिरता थाइ ते लिखे छै. ते त्रण प्रकार ते किहा ? एक बहिर आत्मा, १ एक अंतर आत्मा, २ एक परमात्मा. ३ हिवै बहिरात्मा कहिये ते शरीर, कुटुंब, माल, धन, घर, परिवार, नगर, देश, राग, द्वेष, मिथ्यात्व, मैं मास्यो, मैं जिवाड्यो,मैं सुखी कस्यो,मैं दुखी कस्यो, संसे, विमोह, प्रमुख ए सर्व निज स्वभाव जाणै तेहर्ने बहिरात्मा कहिये, तेहने बहिर दृष्टि होय. ते प्रथम मिथ्यात्व गुणठाणे होवै १.
SR No.022052
Book TitleRatnasar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Nihalchand Shravak
PublisherTarachand Nihalchand Shravak
Publication Year1899
Total Pages332
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size14 MB
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