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________________ ॥ रत्नसार ॥ (९९) ४ पुद्गलास्तिकाय-द्रव्य थी पुद्गल अनंता १ क्षेत्र थी लोक मध्ये २ काल थी अनादि अनंत ३ भाव थी वर्णादि ४ गुण पुरण गलण परिणाम ५. ५ जीवास्तिकाय-द्रव्य थी जीव अनंता १ क्षेत्र थी लोक मध्ये २ काल थी अनादि अनंत ३ भाव थी अवर्णादि ४ गुण उपयोग सहित ५. ६काल- द्रव्य थी काल अनंता अनंत १ क्षेत्र थी मनुष्य लोक २काल थी अनादि अनंत ३ भाव थी अवर्णादि ४ गुण परिवर्तन ५. पुनरपि * द्रव्य थी, क्षेत्र थी, काल थी, भाव थी श्युं ते कहै छै.द्रव्य थी अप्रदेशी १ बीजे क्षेत्र थी अप्रदेशी २ त्रीजे काल थी अप्रदेशी ३ चौथो भाव थी अप्रदेशी ४. . हिवै क्षेत्र थी ते नियमा अप्रदेशी. ते द्रव्य थीं सिय ४ सप्रदेशी (सिय) अप्रदेशी. हिवै काल थी सिय सप्रदेशी ( सिय) अप्रदेशी काल थी पण भजना. * काल द्रव्य श्रासरी ने कहै छै. x सिय कहतां स्यात्
SR No.022052
Book TitleRatnasar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Nihalchand Shravak
PublisherTarachand Nihalchand Shravak
Publication Year1899
Total Pages332
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size14 MB
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