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________________ ॥ रत्नसार ॥ चढते दोय पडते तीने, आरै धर्म कहाय । भरतैरावत ते सही, विदेही धरम सदाय ॥१७॥ परिवत्तिना काल भरहेर, वय लेखो इहाथी लेह । चोथो नित्य विदेह में, आणंद रुचि भणेह ॥१८॥ जिनवर ए नित्य समरतां, लहिये संपद कोडि। पंडित पुण्य रुचि गुरु, सीस कहै कर जोड़ि ॥१९॥ ९४. हिवै चक्रवर्ति ने १४ चउदा रत्न किहां ऊपजे ते चोराणुमो प्रश्नः-चक्र १ असि २ छत्र ३ अने डंड ४ ए चार रत्न आयुध शाला मांहे ऊपजै. तथा मणि रत्न १ कांगणी रत्न २ चर्म रत्न ३ निधि सिरि ग्रहे नीपजै. एवं ७ सात, पुरोहित रत्न १ वार्डिक रत्न २ सेनापति रत्न ३ गाथापति रत्न ४ ए ४ च्यार रत्न पोताना नगरै उपजै. एवं तिवार पछी स्त्री रत्न राज कुले नीपजै. गज रत्न १ अने अस्व रत्न २ वैताढ्य पर्वत ऊपर उपजै. ए १४ चउदा रत्न नी उत्पत्ति कही. ६५.हिवै नव निधान किहां प्रगटै ते पिचाणुमो
SR No.022052
Book TitleRatnasar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Nihalchand Shravak
PublisherTarachand Nihalchand Shravak
Publication Year1899
Total Pages332
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati & Book_Devnagari
File Size14 MB
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