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________________ स्वर्ण सदृश वर्ण वाले क्रौञ्च (पक्षी) के लाञ्छन वाले अभ्र राजा के पुत्र पाँचवें तीर्थङ्कर श्री सुमति ऋण देने और लेने (सम्बन्धी) अधिकार का प्ररूपण की इच्छा वाले मुझे सद्बुद्धि प्रदान करें । - ( वृ०) तत्र किं नाम ऋणम् - ऋण से क्या अभिप्राय है. तृतीय अधिकार ३.२ ऋणादानप्रकरणम् सुवर्णवर्णोऽभ्रनरेन्द्रसूनुः क्रौञ्चाङ्कितः श्रीसुमतिर्जिनेन्द्रः । ऋणप्रदानग्रहणाधिकारं प्रवक्तुकामं सुमतिं प्रदेयात् ॥ १॥ १. २. माँगे जाने पर किसी धनवान द्वारा जो (धन) दूसरे को नियम सहित ब्याज के लोभ से एवं प्रतिदिन (धन में) वृद्धि के लिए दिया जाता है, विद्वानों द्वारा उसे ऋण कहा गया है। ३. ४. याचितेन धनिनाथ केनचित् दीयते सनियमं पराय यत् । तणं निगदितं बुधैर्मिषलोभतः प्रतिदिनं सुवृद्धिकृत् ॥ २ ॥ तत्केन कदा ग्राह्यं तदाह ऋण किससे कब ग्रहण करना चाहिए, वह बताया 'कुटुम्बावन' धर्मापन्मित्राद्यावश्यककर्मणि निर्द्धने नान्यथावाप्तौ ऋणं ग्राह्यं च ऋक्थिनः ॥३॥ 1 परिवार के भरण-पोषण रूप धर्म में आपत्ति आने पर, मित्रादि का आवश्यक - क्रोञ्चाङ्कितम् भ १, क्रोञ्चकितम् भ २, क्रोञ्चाकितम् प २ ।। कुटुंबावन भ १, कुटुंबाबन भ २, कुटंवावन प १, प २ ।। धर्मावन भ १, प १ ॥ ०द्यावश्यकर्मणि भ १, प १ प २, ०द्यवश्यकर्मणि भ २ ॥ -
SR No.022029
Book TitleLaghvarhanniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandracharya, Ashokkumar Sinh
PublisherRashtriya Pandulipi Mission
Publication Year2013
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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