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________________ व्यवहारविधिप्रकरणम् ५७ एकपक्षस्वरूपाप्ति साक्ष्यं स्यात्पूर्ववादिनः। तन्निवृत्तौ पुन यात्साक्षी प्रत्यर्थिनः स्फुटम्॥५१॥ एक पक्ष का स्वरूप जानने के लिए पहले वादी का साक्ष्य हो, उसका साक्ष्य पूरा हो जाने पर फिर प्रतिवादी के साक्षी को स्पष्ट वचन कहना चाहिये। (वृ०) एतद्रीत्या प्राड्विवाकेन पूर्ववादिसाक्ष्यादाने प्रारब्धे प्रत्यर्थी तत्साक्षिनिमित्तं तदनुचरत्वादिदोषप्रतिपादनपूर्वकत्वेनाप्रमाणत्वं वदेत्तदाधिकारी किं कुर्यादित्याह - इस (पूर्वोक्त) रीति से न्यायाधीश के द्वारा पहले वादी के साक्षियों का साक्ष्य ग्रहण करने पर प्रतिवादी उस साक्षी के निमित्त वादी के सेवक आदि से दोषप्रतिपादन के द्वारा उस साक्षी की अप्रामाणिकता कहे तब अधिकारी क्या करे, इसका कथन - अर्थिनोऽनुचरो मित्रं सहवासी कुटुम्बजः। ऋणार्त्तश्चेति तत्साक्ष्यं गृह्णीयाद्दिव्यपूर्वकम्॥ दिव्ये गृहीतेऽसत्यत्वं साक्षिणां च स्फुटं भवेत्। दण्ड्याः पृथक् द्रम्मैर्यथादोषं च धर्मतः॥५२॥ यदि साक्षी के रूप में वादी का सेवक, मित्र, पड़ोसी, कुटुम्बी जन और कर्जदार साक्ष्य देने आया हो तो उससे शपथ पूर्वक साक्ष्य ग्रहण करना चाहिए। शपथ लेने पर भी यदि साक्षियों का झूठ प्रकट हो जाता है तो उनको उनके दोष के अनुसार भिन्न-भिन्न द्रम्मों (सिक्कों) से धर्म के अनुसार दण्डित करना चाहिए। (वृ०) एवं वादिसाक्ष्यभवनान्ते प्रतिवादिसाक्षिणोऽपि साक्ष्यं ददति ततः प्राविवाक उभयसाक्षिणां साक्ष्यं गृहीत्वा पुनः किं कुर्यादित्याह इसी प्रकार वादी का साक्ष्य होने के बाद प्रतिवादी के साक्षी भी साक्ष्य दे देते हैं इसके बाद न्यायाधीश दोनों पक्षों के साक्षियों का साक्ष्य लेकर पुनः क्या करे, इसका कथन - साक्ष्युक्तं प्राड्विवाकश्च विमृश्य सुतरां द्वयोः। कस्य वाक्यस्य प्रामाण्यमिति सभ्यैर्विवेचयेत्॥५३॥ दोनों पक्षों के साक्षियों द्वारा (दिये गये) वक्तव्य का भलीभाँति विमर्श कर किस (साक्षी) का वाक्य प्रमाण है - ऐसा सभासदों द्वारा विवेचित किया जाना चाहिए। (वृ०) यद्यर्थी साक्ष्यादिभिः स्वोक्ति समर्थनं कर्तुम् न शक्नुयात्तदा दण्ड्यः ।
SR No.022029
Book TitleLaghvarhanniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandracharya, Ashokkumar Sinh
PublisherRashtriya Pandulipi Mission
Publication Year2013
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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