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________________ ३६ मृताङ्गोत्सृष्ट' विक्रेता गुरोस्ताडयिता' नरः । भूपयानासनस्थायी दण्ड्यः स्यादुत्तमेन च ॥ २० ॥ वाले मृतक के शरीर पर से उठाये गये (वस्त्रादि) के विक्रेता और गुरु को मारने पुरुष 'और राजा के वाहन और आसन पर बैठने वाले को उत्तम (अपराध) से दण्डित करना चाहिए। नेत्रभेदनकर्त्ता यो दण्ड्यः पञ्चशतेन जीवतो द्विजरूपेण शूद्रस्याष्टशतो (किसी की) आँख फोड़ने वाला व्यक्ति पाँच सौ (मुद्राओं से) और ब्राह्मण वेश द्वारा जीविकार्जन करने वाला शूद्र आठ सौ द्रम्म से दण्डनीय 1 १. २. ३. ४. पराजितोऽपि यो मन्ये जेतास्मीत्यभिमानतः । राजद्वारे तमाकृष्य दण्डयेद् द्विगुणेन च ॥ २२ ॥ पराजित होने पर भी जो ( मिथ्या) अभिमान से स्वयं को विजयी मानता है उसे राजद्वार पर ले आकर दोगुना दण्ड देना चाहिए। लघ्वर्हन्नीति ( वृ०) अन्यायविहितदण्डप्राप्तधनगतिमाह अन्यायपूर्वक दण्ड से प्राप्त धन का क्या करना चाहिए, इसका निरूपणं योऽन्यायेन कृतो दण्डः भूपालेन कथञ्चन। कृत्वा त्रिंशद्गुणं तं च धर्माय परिकल्पयेत्॥२३॥ - सः । द्रम्मः ॥ २१ ॥ राजा द्वारा अन्याय पूर्वक किये गये दण्ड से जो कुछ (धन प्राप्त हो) उसका तीस गुना कर धर्म ( कार्य ) के लिये निश्चित करना चाहिये । ( वृ०) दण्डभेदमाह दण्ड के भेदों का कथन - - मृतागोत्सृष्ट भ १, भ २ प १ प २ ॥ ताडविता प २॥ दमः भ १, भ २, प १, प २ ॥ धर्माय भ १ ॥ उदरमुपस्थं जिह्वा हस्तौ कर्णौ धनं च देहश्च । पादौ नासा चक्षुर्दण्डस्थानानि दशधैव ॥ २४ ॥ पेट, उपस्थ (शरीर का मध्य भाग, पेडू, नितम्ब, स्त्री या पुरुष की जननेन्द्रिय), जिह्वा, हाथ, कान, धन, शरीर, पैर, नाक और आँख दस प्रकार के दण्ड के स्थान हैं। -
SR No.022029
Book TitleLaghvarhanniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandracharya, Ashokkumar Sinh
PublisherRashtriya Pandulipi Mission
Publication Year2013
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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