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________________ लघ्वर्हन्नीति इसलिए द्रव्यदण्ड, ज्ञातिदण्ड एवं ताडनादि दण्डों का भी यहाँ ग्रहण करना चाहिए। समय एवं दोष के अनुरूप दण्ड का प्रयोग करना सदा सिद्धिदायक होता है। ३४ (वृ०) यदुक्तम् – जैसा कि कहा गया है - यथापराधं देशं च कालं बलमथापि वा । व्ययं कर्म च वित्तं च दण्डं दण्डचेषु पातयेत् ॥८॥ अपराध, देश, काल, बल अथवा व्यय, कर्म और वित्त (के अनुसार) अपराधियों को दण्ड देना चाहिए। तत्र द्विजे मेति दण्डः हेति क्षत्रियवैश्ययोः । धिक्कारः शूद्रमात्रेषु परे वर्णचतुष्टये ॥९॥ उन दण्डों में से ब्राह्मण पर 'मा' दण्ड, क्षत्रिय और वैश्य पर 'हा' (दण्ड) और शूद्र वर्ग पर 'धिक्कार' और अन्य (चार दण्ड) चारों वर्णों पर लागू होते हैं । ( वृ०) अत्रैव विशेषमाह जाते महापराधेऽपि नारीविप्रतपस्विनाम् । नाङ्गच्छेदो वधो नैव कुर्यात्तेषां प्रवासनम् ॥१०॥ गम्भीर या बड़ा अपराध करने पर भी स्त्री, ब्राह्मण और तपस्वियों का न तो अङ्गच्छेद और न ही वध करना चाहिए वरन उनका (देश से) निर्वासन करना चाहिए। विक्रयी । वैश्यश्चेत्मांसविक्रेता कूटहेम्नश्च प्रागङ्गहीनं तं कृत्वा दण्डयेद् द्रुतमेव च ॥ ११ ॥ वैश्य यदि मांस विक्रेता और खोटा या नकली सोना बेचने वाला हो तो उसके प्रमुख अङ्ग का छेदन कर उसे शीघ्र दण्डित करना चाहिए। मनुष्यप्राणहर्ता च चौरवद्दण्डभाग् भवेत् । गोगजोष्ट्रादिबृहज्जन्तुविनाशके ॥१२॥ ततोऽर्द्ध मनुष्य का वध करने वाले को चोर के समान दण्ड देना चाहिए, विशाल प्राणियों गाय, हाथी, उष्ट्र आदि को मारने वाले को उसका आधा दण्ड देना चाहिए। क्षुद्रजीवविनाशे तु द्विशतं दम उच्यते। पञ्चाशद्दण्डभागी स्यान्मृगपक्षिविनाशकः ॥ १३ ॥
SR No.022029
Book TitleLaghvarhanniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandracharya, Ashokkumar Sinh
PublisherRashtriya Pandulipi Mission
Publication Year2013
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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