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________________ लघ्वर्हन्नीति वाहनायुधवर्मादिसामग्री संविधाय च। देवं गुरुं च सम्पूज्य शान्तिकर्मपुरस्सरम्॥३२॥ सुमुहूर्ते सुशकुने मार्गादौ माससप्तके। यात्रां कुर्वीत राजेन्द्रो वीक्ष्य कालबलाबलम्॥३३॥ राजा अपने राष्ट्र एवं दुर्ग की सुरक्षा में समर्थ सेनापति तथा सेना स्थापित कर, अपने राज्य में अपने लोगों को अत्यधिक सन्तुष्ट कर, वाहन, आयुध, कवच आदि सामग्री को सज्जित कर और (शान्ति कर्म सहित) देव, गुरु की पूजा कर, उत्तम मुहूर्त और उत्तम शकुन देखकर मार्गशीर्ष मास से लेकर (अगले) सात मासों में समय और सबल तथा निर्बल पक्ष का परीक्षण कर (युद्ध के लिए) प्रस्थान करे। (वृ०) अत्र मार्गशीर्षादिमाससप्तके युद्धप्रस्थानकाल इति दर्शनेन वlचतुर्मासेषु युद्धनिषेधः सूचितः। मार्गशीर्ष आदि सात महीनों को युद्ध हेतु प्रस्थान का काल बताकर शेष चार मासों में युद्ध का निषेध सूचित किया गया है। मुहूर्तशकुनादिविचारस्तु निमित्तशास्त्रात् ज्ञेयः इति। मुहूर्त शकुनादि का विचार निमित्तशास्त्र से ज्ञात कर लेना चाहिए। मन्त्रिसामन्तसन्मित्रनैमित्तिकभिषग्वर । कोषाध्यक्षादिसंयुक्तश्चतुरङ्गचमूवृतः ॥३४॥ वेषान्तरधरैश्चारैराज्ञातश्च पदे पदे। गच्छेत्समाहितो मार्गे शोधिते चाग्रगामिभिः॥३५॥ युद्ध हेतु प्रस्थान के समय मन्त्री, सामन्त, सन्मित्र, नैमित्तिक, श्रेष्ठ वैद्य, कोषाध्यक्ष आदि सहित चतुरङ्गिणी सेना से घिरा हुआ, परिवर्तित वेष धारण करने वाले गुप्तचरों द्वारा आगे जाकर मार्ग का शोधन कर कदम-कदम की सूचना प्रदान किये जाने पर आश्वस्त होकर राजा आगे बढ़े। गतप्रत्यागतभृत्ये . गूढभक्तिपरायणे। मित्रे च न हि विश्वासः कार्यो भूपेन सर्वदा॥३६॥ अत्यधिक भक्तिपरायण, आने-जाने वाले नौकर तथा मित्र पर राजा को सदा विश्वास नहीं करना चाहिए। सर्वतो भयसत्वे च दण्डव्यूहेन पार्थिवः। पृष्ठतो हि भयप्राप्तावनोव्यूहेन गच्छति॥३७॥
SR No.022029
Book TitleLaghvarhanniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandracharya, Ashokkumar Sinh
PublisherRashtriya Pandulipi Mission
Publication Year2013
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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