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________________ भूपालादिगुणवर्णनम् षड्दर्शनों का ज्ञाता, गुरु, देव आदि का उपासक, सर्वदा सदाचार का पालन करने वाला, पापकर्म से विमुख, सदा हंस की भाँति दुग्ध और पानी को पृथक् करने वाला, सतत न्याय का चिन्तन करने वाला, कुलपरम्परा से आया हुआ, राजोचित मार्ग को बताने वाला, इस प्रकार का पुरुष राज्य की वृद्धि करने वाला मन्त्री होता है। क्रोधाल्लोभात्तथोत्सेकाहर्यादपथिवर्त्तनम् । वर्जनीयं सदामात्यैर्वाच्यं नित्यं यथाहितम्॥६७॥ व्यवहारे न कस्यापि पक्षः कार्यस्त्वया। नृप्रजाहितैकनिष्ठत्वं धारणीयं निरन्तरम्॥६८॥ परामर्श विधायोच्चैः राज्याङ्गेषु च वैरिषु। तथा कार्यं यथा स्वामिकार्ये हानिन जायते॥६९॥ - इति मन्त्रिशिक्षा॥ अमात्यों द्वारा क्रोधवश, लोभवश, अहङ्कारवश और अभिमानवश कुत्सित मार्ग के आचरण का सदा त्याग करना चाहिए तथा सदैव हितकारी वचन बोलना चाहिए। व्यवहार में किसी का भी पक्ष नहीं लेना चाहिए, निरन्तर राजा एवं प्रजा के हित का ही एक मात्र लक्ष्य धारण करना चाहिए। राज्य के अङ्गों तथा शत्रुओं के विषय में उच्च अधिकारियों से परामर्श कर उस प्रकार कार्य करना चाहिए जिससे राज्य की हानि न हो। नृपामात्यौ यदि स्यातां पूर्वोक्तगुणधारको। तदा प्रवर्तते नीतिर्न च स्याद् द्विषदागमः॥७०॥ यदि राजा और अमात्य पूर्व में कहे गये गुणों के धारक हों तब नीति के अनुसार (राज्य-कार्य) सञ्चालन होने पर राज्य में शत्रु का प्रवेश नहीं होगा। पूर्वोक्तशिक्षया युक्तः प्रातरुत्थाय भूपतिः। मङ्गलातोद्यनादेन स्मरेत्पञ्चनमस्कृतिम्॥७१॥ पूर्व में कही गई शिक्षाओं से युक्त राजा प्रातः उठकर मङ्गल वाद्यों की ध्वनि के साथ पञ्चपरमेष्ठि नमस्कार का स्मरण करे। कृत्वा प्राभातिकं कृत्यं स्नात्वा गत्वा जिनालये। जिनभक्तिं विधायोच्चैः परिच्छदसमावृतः॥७२॥ गुरुश्चेत्तर्हि तत्पादनतिं कृत्वा तदग्रतः। स्थित्वा तद्देशनां श्रुत्वाभियुक्तः सुसमाहितः॥७३॥
SR No.022029
Book TitleLaghvarhanniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandracharya, Ashokkumar Sinh
PublisherRashtriya Pandulipi Mission
Publication Year2013
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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