SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 43
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भूपालादिगुणवर्णनम् यशस्करै रमाभिश्च पूरयः सकलामिलाम्। घातयः शत्रुवंश्यांश्च पोषयेः सुहृदन्वयम्॥५३॥ तुम्हारे (राजा) द्वारा न कभी किसी का पक्ष ग्रहण करना चाहिए और न ही चित्त को अस्थिर (उद्वेग) करना चाहिए। स्त्रियों, धनवानों, विपक्षियों, अधम, मदिरा सम्बन्धी अपराधियों, मूल् तथा अल्पवयस्कों का कभी विश्वास नहीं करना चाहिए। देव और गुरु की आराधना, अपनी प्रजा का पालन तथा पोषण किये जाने योग्य वर्ग के पोषण का कार्य दूसरों के हाथ में नहीं सौंपना चाहिए। आनन्द में अत्यधिक अहङ्कार तथा सङ्कट के समय में धैर्य का त्याग नहीं करना चाहिए - बुद्धिमानों द्वारा ये दो उत्तम लक्षण बताये गये हैं। राजा कीर्ति में वृद्धि करने वाले शास्त्र, दान, परिखाओं, भोजनशालाओं, भवनों और जलाशयों से सम्पूर्ण पृथ्वी को पूर्ण कर दे। राजा शत्रु के वंशजों को नष्ट करे और मित्रों के वंश का पोषण करे। शक्तित्रिकमुपायानां चतुष्कं चाङ्गसप्तकम्। वर्गत्रयं सदैतानि रक्षणीयानि यत्नतः॥५४॥ तत्र प्रभूत्साहमन्त्राः शक्तयः समुदाहृताः। उपायाः सामदामौ च दण्डभेदाविति क्रमात्॥५५॥ स्वाम्यमात्यसुहृत्कोशराष्ट्रदुर्गबलानि च। सप्ताङ्गी नीतिराज्यस्य प्रकृतिश्चाष्टमा क्वचित्॥५६॥ षड्गुणाश्च समाख्याता राज्यस्तम्भोपमा इमे। सन्धिविग्रहयानासनाश्रयद्वैधभावनाः ॥५७॥ तीन शक्ति, चार उपाय, सात अङ्ग और त्रिवर्ग से सदा प्रयत्नपूर्वक (राज्य का) रक्षण करे। सामर्थ्य (बल), उत्साह तथा मन्त्र (तीन) शक्तियाँ कही गई हैं। साम, दाम, दण्ड और भेद क्रमशः उपाय कहे गये हैं। स्वामी, प्रधान, मित्र, कोश, राष्ट्र, दुर्ग और सैन्य - ये सात राज्य के अङ्ग हैं। कुछ प्रकृति को राज्य का आठवाँ अङ्ग भी स्वीकार करते हैं। सन्धि, विग्रह (युद्ध), यान, आसन, आश्रय और द्वैध भावना (राजनीति में दुरङ्गी नीति बरतने का गुण) - इन छः गुणों को राज्य के स्तम्भ की उपमा दी जाती है। पालयेच्च प्रजाः सर्वाः स्वपरापेक्षयोञ्जितः। दुष्टान् प्रजापीडकांश्च तथा राज्यपदैषिणः॥५८॥ यशस्कारै भ १, भ २, प१, प २॥
SR No.022029
Book TitleLaghvarhanniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandracharya, Ashokkumar Sinh
PublisherRashtriya Pandulipi Mission
Publication Year2013
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy