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________________ (xxiii) हाणी णहु सुवणेअमीए पलदुग्गं भवे रयए। तंवस्स पञ्च लोहे दस सीसे अठयइसयगं॥१॥३.८.९ हियवाइस्सय वयणं जो नहु मणइ तिदुवितव्यूहे सो होइ दण्डणिज्जोपढमदमेणं खुणिच्वंपि।१।३.१३.७॥ लघ्वर्हन्नीति के चारों अधिकारों में से तृतीय व्यवहार अधिकार के अठारह प्रकरणों के शीर्षकों पर विचार करने पर हम पाते हैं कि अपराध को अठारह प्रकारों में वर्गीकृत करने की परम्परा विद्वानों के अनुसार सर्वप्रथम मनु ने आरम्भ की थी। सम्पूर्ण अपराधों को मनु ने अठारह विभागों में समेट कर व्यवहार पद्धति को नई दिशा दी है। वे ही प्रथम व्यवस्थाकार, न्यायविद् एवं विधिज्ञ थे जिन्होंने सूक्ष्म चेतना के आधार पर अपनी पैनी व विवेचनापूर्ण दृष्टि से ऋग्वेदकाल से लेकर अपने पूर्ववर्तीकाल तक विशृंखलित व्यवहार पद्धति को व्यवस्थित किया है। मनु के बाद के स्मृतिकारों तथा अर्थशास्त्र के रचयिता कौटिल्य ने भी अपराध का वर्गीकरण, मनु द्वारा निर्देशित आधार पर ही किया है। यद्यपि अनेक स्थलों पर भिन्नता दृष्टिगत होती है तो भी रूपरेखा, मानदण्ड, व्यवहारप्रणाली, मनु के अनुरूप ही है। अनेक व्यवहार शीर्षकों में परिवर्तन एवं कुछ भिन्नता अवश्य हुई है, परन्तु उनका मूल मनु के सिद्धान्तों में ही आधारित है। काल परिवर्तन के प्रभाव से अपराध-सूचियों में परिवर्तन अवश्य हुआ। अपराध वरीयता भी विभिन्न कालों में बदलती रही थी। ___ मनु ने व्यवहार-पद्धति में १८ प्रकार के व्यवहारों का उल्लेख किया है। याज्ञवल्क्य ने बीस प्रकार के व्यवहारों को दर्शाया है। उन्होंने अयुपेत्या- शुश्रूषा एवं प्रकीर्णक नाम से दो अतिरिक्त व्यवहारों का उल्लेख किया है। नारद ने १८, बृहस्पति ने १९ प्रकार के व्यवहार वर्ग में प्रकीर्णक व्यवहार पद्धति अध्याय को सम्मिलित किया है। यही स्थिति कौटिल्य की भी है। स्मृतिकारों ने मनु द्वारा प्रतिपादित व्यवहार वर्गीकरण को ज्यों का त्यों या न्यून परिवर्तन के साथ स्वीकार कर लिया है। स्मृतिकारों की व्यवहार सूचियों से स्पष्ट है कि प्रत्येक स्मृतिकार के युग में अपराधों की ज्येष्ठता व गुरुता परिवर्तनशील रही है। समय व परिस्थितियों के कारण सामाजिक परिवर्तन का सीधा प्रभाव व्यवहारों के क्रम पर पड़ता था। ऋण और निक्षेप को छोड़कर स्मृतिकारों ने अपनी-अपनी अपराध या व्यवहार सूची को बदला है। मनु ने तीसरे स्थान पर अस्वामिविक्रय को रखा, तो याज्ञवल्क्य ने दायविभाग, नारद ने सम्भूयसमुत्थान, बृहस्पति ने अदेयाह्य (दत्ताप्रदानि) को तीसरे स्थान पर रखा है। सम्पूर्ण स्मृतिकारों के व्यवहार विवरण इस परिवर्तन से
SR No.022029
Book TitleLaghvarhanniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandracharya, Ashokkumar Sinh
PublisherRashtriya Pandulipi Mission
Publication Year2013
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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