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________________ २०६ लघ्वर्हन्नीति साथ भोजन और पान वर्जित है उसके साथ भोजन करने पर तीन उपवासों से शुद्धि मानी गयी है। तद्भक्षणे कृते शुद्धिरुपवासत्रयान्मता। म्लेच्छदेशनिवासेन म्लेच्छीभूय तदाग्रहात्॥३७॥ म्लेच्छकारानिवासाद्वा यश्चाभक्ष्यस्य भोजनम्। तथा पानमपेयस्य म्लेच्छादि सह भोजनम्॥३८॥ परजातिप्रवेशं च विवाहकारणादिभिः। महाहिंसादिकं कुर्यादज्ञानेन च मानवः॥३९॥ विशोधनाद्धि तच्छुद्धिः प्रायश्चित्ताद्भवेदिति। विशोधनामथ बूमो विस्तरेण निशम्यताम्॥४०॥ मनुष्य यदि म्लेच्छ-देश में निवास होने से उन (म्लेच्छों) के आग्रह (दबाव) से म्लेच्छ रूप में रहे अथवा म्लेच्छों की कैद में रहे, अभक्ष्य का ग्रहण तथा अपेय पदार्थ का पान, म्लेच्छादि के साथ भोजन, विवाह आदि कारण से जाति में सम्मिलित हो जाये और अज्ञानवश महाहिंसा आदि पाप करे तो विशोधन से उसकी शुद्धि या प्रायश्चित्त होती है। इसके पश्चात् (उक्त पापों की विशुद्धि का) मैं विस्तार से प्रतिपादन करता हूँ सुनें - वमनं त्र्यहमाधाय विरेकं च त्र्यहं चरेत्। वमने लङ्घनं प्राहुविरके यवचर्वणम्॥४१॥ ततश्चैव हि सप्ताहं भूमौ निक्षिप्य चोपरि। ज्वलनज्वालनं कुर्यात् काष्ठैरुदुम्बरैरपि॥४२॥ तीन दिन वमन करावें, तीन दिन विरेक (रेचक), वमन के दिनों में उपवास कराने और रेचक के दिनों में यव (अन्न-विशेष) का चर्वण कराने का विधान है। उसी प्रकार (इसके पश्चात्) सात दिन भूमि पर सुलाकर ऊपर जलावन से आग कर उसे तपाना चाहिए। (वृ०) विशोधनप्रायश्चित्तस्वरूपं त्वित्थं - अर्थात् विशोधन प्रायश्चित्त का स्वरूप इस प्रकार है - गावं वृषं च संयोज्य कुर्वीत हलवाहनम्। ज्वलनज्वालने चैव तथा च हलवाहने॥४३॥ कुर्याच्चतुर्दशानि मुष्टिमात्रयवाशनम्। ततः शिरसि कूर्चे च कारयेदपि मुण्डनम्॥४४॥
SR No.022029
Book TitleLaghvarhanniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandracharya, Ashokkumar Sinh
PublisherRashtriya Pandulipi Mission
Publication Year2013
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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