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________________ १९८ . लघ्वर्हन्नीति पुरुष प्रसन्नमन हो एकान्त में रमणीया, प्रसन्नचित्तवाली और स्नेहिल नारी को पुत्र के लिए सेवन करे, भोग के लिए नहीं। प्रसन्नतास्थितो गर्भो जातश्चेद्भाग्यवान् भवेत्। सुमुहूर्ते च विख्यातः स्वातिजं मौक्तिकं यथा॥३६॥ प्रसन्नतापूर्वक धारण किये गर्भ से उत्पन्न (सन्तान उसी प्रकार) भाग्यवान होती है, जैसे स्वाति नक्षत्र में शुभ मुहूर्त में उत्पन्न मोती प्रसिद्ध होता है। 'नोपगच्छेत् प्रमत्तोऽपि नारीमार्तवदर्शने। एकस्मिन् शयनीये च न शयीत तया सह॥३७॥ स्त्री का ऋतु-दर्शन होने पर प्रमत्त (काम विह्वल) होने पर भी (पुरुष को उसके) समीप नहीं जाना चाहिए और न ही उस (राजस्वला स्त्री) के साथ एक शय्या पर सोना चाहिए। नरो रजोऽभिलिप्ताङ्गां सेवेत स्वां वधूमधीः। प्रज्ञाकीर्तिर्यशस्तेजस्तत् क्षणे च विलीयते॥३८॥ जो बुद्धिहीन पुरुष रज से अभिलिप्त (रजस्वला) अपनी स्त्री का भोग करता है उसकी बुद्धि, कीर्ति, यश तथा तेज एक क्षण में नष्ट हो जाता है। नाश्नीयात्तया सार्द्ध नाश्नन्तीं तां निरीक्षयेत्। न जृम्भमाणां नो सुप्तां नाशौचादिक्रियापराम्॥३९॥ पुरुष स्त्री के साथ बैठकर न भोजन करे, न उसे खाते हुए , न उसे जंभाई लेते हुए, न सोते हुए और न शौच आदि क्रिया करते समय देखे। सूर्यास्तोत्तरकाले च न किञ्चिदपि भक्षयेत। नग्नो न हि स्वपेत् कुत्र नोच्छिष्टास्यः क्वचिच्छृजेत्॥४०॥ पुरुष सूर्यास्त के बाद कुछ भी ग्रहण न करे, न नग्न होकर सोये, न ही कहीं पर जाये। न वसेत् षण्डकैः क्लीबैर्निषादैः पतितैरपि। नान्त्यै भ्रष्टैर्मदाविष्टैर्न मन्दैश्चापराधिभिः॥४१॥ (पुरुष) अशक्त, नपुंसक, चाण्डाल, पतित, अन्त्यज, भ्रष्ट, व्यसनी, मन्दबुद्धि और अपराधियों के साथ न रहे। नोभयाभ्यां च पाणिभ्यां कुर्याच्छिरसि खर्जनम्। न स्पृशेन्नरमस्पृश्यं न च स्नायाच्छिरो विना॥४२॥ १. ०न्नातया भ १, भ २, प १, प २॥
SR No.022029
Book TitleLaghvarhanniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandracharya, Ashokkumar Sinh
PublisherRashtriya Pandulipi Mission
Publication Year2013
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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