SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 224
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १९० लघ्वर्हन्नीति वाहन चालक के मूर्ख होने पर राजा द्वारा (वाहन चालक और स्वामी) को दण्डित करना चाहिए। वाहन चालक से सौ मुद्रा लेकर पहले यान के स्वामी को देना चाहिए। यानान्तरेण गोऽश्वादिरुद्धे मार्गे तु सारथिः। अशक्तो वृषरोधादौ न दण्ड्यः स्याच्च सर्वथा॥२१॥ गाय, घोड़े आदि द्वारा वाहन का मार्ग अवरुद्ध होने और साँड़ द्वारा मार्ग अवरुद्ध आदि होने पर तो वाहन चालक असमर्थ है और वह किसी भी प्रकार दण्डनीय नहीं है। जीवनाशे तु दण्ड्यः स्यात्सूतो भूपेन केवलम्। वस्तुनाशे तत्प्रसत्तिं नृपस्तेन प्रदापयेत्॥२२॥ (वाहन के नीचे, धक्का लगने से) प्राणी के घायल, मृत्यु आदि होने पर राजा द्वारा वाहन चालक-दण्डनीय है। वस्तु के नष्ट होने पर राजा द्वारा उस (चालक) से उसकी क्षतिपूर्ति दिलवानी चाहिए। मर्त्यनाशे महत्पा' चौरवद्दण्डमाप्नुयात्। गोगजाश्वोष्ट्रमहिषोघाते स्वामिप्रसन्नता॥२३॥ (दुर्घटना में) प्राणी की घायल अथवा मृत्यु होना पाप है (इस स्थिति में) चोर (चोरी के अपराध करने वाले) के समान दण्ड देना चाहिए। गाय, हाथी, अश्व, उष्ट्र, भैंस के मरने पर (उसके मूल्य के बराबर धन आदि देकर) स्वामी की प्रसन्नता ही दण्ड है। कारणीया ततो दण्डो गृह्यते पृथिवीभुजा। यथा पुनर्न कोऽपि स्यादी दृशो जीवघातकृत्॥२४॥ राजा यान-चालक को ऐसा दण्ड दे जिससे कि पुनः इस प्रकार जीव हत्या करने वाला कोई भी न हो। भार्यापुत्रप्रेष्यदाससोदराश्चापराधिनः । तेषां नाथेन दण्डेन स्तैन्यकर्मणि भूभृता॥२५॥ यदि पत्नी, पुत्र, दूत, दास, सहोदर (भ्राता), चौरकर्म के अपराधी हों तो राजा द्वारा नाथ (बैल की नाक में पिरोई जाने वाली रस्सी और) दण्ड से उनकी पिटाई हो। १. तृषरोधा प १, प २॥ २. महत्पापी भ १, भ २, प १, प २।। ३. ०याते भ १, ०द्याते भ २, प २॥ स्तासांना० भ १, भ २, प १, प २।। | CH
SR No.022029
Book TitleLaghvarhanniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandracharya, Ashokkumar Sinh
PublisherRashtriya Pandulipi Mission
Publication Year2013
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy