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________________ (xx) (४) प २ पाटन (गुजरात) के श्री हेमचन्द्राचार्य जैन ज्ञानमन्दिर में उपलब्ध इस हस्तप्रत का क्रमाङ्क १८७९३ है। इसमें ३६ पत्र हैं। इसकी लम्बाई २१.५ से. मी. और चौड़ाई १० से.मी. है। इसमें प्रत्येक पृष्ठ पर १५ पंक्तियाँ हैं। इस हस्तप्रत का भी लेखन काल अङ्कित नहीं है। प्रतिलिपि संवत् १९४८ (सन् १८९१) में गुजरावाला के ब्राह्मण बेलीराम द्वारा की गई है। लघ्वर्हन्नीतिशास्त्र का आलोचनात्मक सम्पादन लघ्वर्हन्नीतिशास्त्र की हस्तप्रतों में कुछ ऐसे संयुक्त व्यञ्जनों का द्वित्व प्रयोग उपलब्ध होता है सामान्यतया जिनके प्रयोग में प्रायः द्वित्व का अभाव होता है। सम्भवतः महर्षि पाणिनि के सूत्र ‘अचोरहाभ्यां द्वे' ८-४-४६ के अनुसार जिसप्रकार अर्कः, मर्कः, ब्रह्ममा में अचः पराभ्यां रेफहकाराभ्यां परस्य यरोद्वे वा स्तः (वृत्ति) अर्थात् अच् रे पर जो रेफ और हकार उनसे पर जो यर् उसको विकल्प से द्वित्व होता है। लघ्वर्हन्नीति की हस्तप्रतों में उपलब्ध ऐसे कुछ शब्दों की सूची इस प्रकार है - पर्व (१-६), धर्म (१-१५), मर्म (१-१८), कर्म (१-३०), आय्र्यैः (१-२१), कार्यं (१-८९), पूर्वं (२-१२), दुर्गे (२-१४), पर्यन्त (२-१८), सर्वथा (२-४६) आदि। प्रस्तुत संस्करण में इस प्रकार के शब्दों का द्वित्वरहित पाठ ग्रहण किया गया है। लघ्वर्हन्नीति का वैशिष्ट्य प्रस्तुत ग्रन्थ का शीर्षक लघ्वर्हन्नीति है। यह कृति चौलुक्य राजा कुमारपाल के आग्रह पर पूर्वविरचित किन्तु सम्प्रति अनुपलब्ध प्राकृत भाषा निबद्ध समान विषयक विशाल ग्रन्थ अर्हन्नीति शास्त्र से सार ग्रहण कर लिखा गया है। इस कारण आचार्य ने अपनी इस कृति का शीर्षक लघ्वर्हन्नीति और स्रोत ग्रन्थ को बृहदहन्नीति शीर्षक से उल्लिखित किया है। वस्तुतः राजनीतिशास्त्र विषयक अर्हन्नीति शीर्षक अन्य कोई ग्रन्थ उपलब्ध नहीं है। जैन परम्परा में इस विषय पर अन्य उपलब्ध कृति सोमदेवसूरि विरचित नीतिवाक्यामृतम् (९९२ ई०) है। विद्वानों ने राजनीति शास्त्र के ज्ञापक शब्दों पर विचार किया है। सामान्य रूप से राज्य-कार्य तथा राज- सिद्धान्तों का वर्णन करने वाले ग्रन्थ दण्डनीति और अर्थशास्त्र कहलाते थे। उशनस् ने इस विषयक अपने ग्रन्थ का नाम दण्डनीति और बृहस्पति ने अर्थशास्त्र रखा था। विष्णुपुराण में भी अठारह विद्याओं की सूची में अर्थशास्त्र का उल्लेख है। (प्राचीन भारतीय राजशास्त्र की अवधारणा और महत्त्व, (शिवस्वरूप सहाय, मोती लाल बनारसी दास, दिल्ली २००५, पृ. ५)। मनु ने भी इसे दण्डनीति कहा है (मनुस्मृति ७.३१)। आपस्तम्ब
SR No.022029
Book TitleLaghvarhanniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandracharya, Ashokkumar Sinh
PublisherRashtriya Pandulipi Mission
Publication Year2013
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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