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________________ १८४ लघ्वर्हन्नीति वैद्यक शास्त्र को न जानते हुए मायापूर्वक 'मैं वैद्य हूँ' यह कहते हुए तिर्यकों की चिकित्सा करने वाले वैद्य को आद्य साहस से दण्डित करना चाहिए। मनुष्याणां चिकित्सां कुर्वन्मध्यमसाहसेन दण्ड्यः। मनुष्यों की चिकित्सा करने वाले उक्त वैद्य को मध्यम साहस से दण्डित करना चाहिए। भौपानां राजसम्बन्धिनां चिकित्सां कुर्वन्नुत्तमसाहसेन दण्ड्यः राजाओं अथवा राजा के सम्बन्धियों की चिकित्सा करते हुए उक्त वैद्य को उत्तमसाहस से दण्डित करना चाहिए। यश्च वध्नात्यबद्धं वै बद्धं यश्च विमुञ्चति। अनिवृतकृति भूपाज्ञामृते वरसाहसम्॥२७॥ जो अधिकारी बन्धन की राजाज्ञा के बिना किसी को बाँधता है, जो बाँधने के योग्य है उसको मुक्त कर देता है और जो अपना दायित्व पूरा नहीं करता है वह उत्तम अपराध के दण्ड का पात्र है। (वृ०) स्पष्टम् - यो मानसमयेऽष्टांशं व्रीहि कार्पासयोहरेत्। पुनर्हानौ तथा वृद्धौ प्राप्नुयाद्विशतैर्दमम्॥२८॥ जो चावल या कपास तौलते समय आठवाँ भाग ग्रहण कर ले उससे अधिक या कम होने पर उस (तौलने वाले) से दो सौ द्रम (रुपया) दण्ड प्राप्त करना चाहिये। गन्धधान्यगुडस्नेहभेषजादिषु यः क्षिपेत्। न्यूनद्रव्यं स्वलोभेन दण्ड्यः स्याद्दशराजतैः॥२९॥ लोभवश जो सुगन्धित पदार्थ, धान्य, गुड़, तेल और औषधि में अल्प द्रव्य मिश्रित कर विक्रय करता है उसे सौ रजत मुद्राओं से दण्डित किया जाना चाहिये। साहसेन तु यः कुर्यात्समुद्राधानविक्रयम्। कुङ्कमादिपरावर्तो दण्ड्यो विंशतिभिस्त्रिभिः॥३०॥ जो मनुष्य अपराध में मुद्रा से युक्त वस्तु का विक्रय करे अथवा कुमकुम आदि पदार्थों की अदला-बदली करे उसे साठ रुपये से दण्डित करना चाहिये। १. अनिवृतकृतिं भ १, भ २, प १, प२।। कार्यासयो भ १, भ २, प १, प २॥ परावर्ते भ १, परावर्ती भ २, परावता प १, परावर्तो प २॥ ३.
SR No.022029
Book TitleLaghvarhanniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandracharya, Ashokkumar Sinh
PublisherRashtriya Pandulipi Mission
Publication Year2013
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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