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________________ समयव्यतिक्रान्तिप्रकरणम् समुदाय तथा राजा का धर्म सामयिक धर्म कहा जाता है, उसका उल्लङ्घन करने वाला व्यवहार मार्ग में दण्ड का भागी होता है। तथाहि साधारणं च यद्द्रव्यं तद्धरेल्लङ्घयेत्पुनः । गणभूपस्थितिं तं च सर्वं हृत्वा प्रवासयेत् ॥ ५ ॥ साधारण (ग्रामादि सार्वजनिक) धन का जो मनुष्य हरण करे और पुनः गण (पञ्च) तथा राजा के निर्णय का उल्लङ्घन करे तो उससे सर्वस्व हरण कर राज्य से निर्वासित कर देना चाहिये। ( वृ०) साधारणम् ग्रामादिजनसमुदायद्रव्यं योऽपहरति गणस्थितिं राजस्थितिं च योऽतिक्रामति तस्य सर्वस्वमपहृत्य राजादेशान्निर्वासयेत्। साधारण द्रव्य अर्थात् ग्रामादि जन समुदाय का धन जो चुराता है, पञ्चों और राजा द्वारा निश्चित नियमों या निर्णय का उल्लङ्घन करता है तो राजा को उसका सर्वस्व हरण कर राज्य से निर्वासित कर देना चाहिये । (वृ०) अथ समूहे हितवादिवचनं सर्वैरङ्गीकरणीयमन्यथादण्डः स्यादित्याहसमूह अर्थात् पञ्चों के हितवादी वचनों को सभी मनुष्यों को स्वीकार करना चाहिए, ऐसा न करने पर दण्ड देना चाहिय, यह कथन १. हितवादिवचो मान्यं समूहे तत्स्थितैः परैः । विपरीतो हि दण्ड्यः स्याज्जघन्येन दमेन च ॥ ६ ॥ १६१ समूह या पञ्च-समिति में स्थित सदस्यों के हितवादी वचनों को दूसरे मनुष्यों को स्वीकार करना चाहिए। इसके विपरीत ( न मानने वालों को) अधम दण्ड से दण्डित करना चाहिये । - ( वृ०) यदुक्तं बृहदर्हन्नीतौ जैसा कि बृहदर्हन्नीति में कहा गया है हियवाइस्सय वयणं जो नहु मणइ तिदुवितव्यूहे सो होइ दण्डणिज्जोपढमदमेणं खु णिच्चपि । १ । अथ समुदायकार्यकारिणां कथं सत्कारो विधेय इत्याह इसके अनन्तर समुदाय का कार्य करने वालों का किस प्रकार आदर करना चाहिये, यह कथन — साज्ज० प १ ॥ — कार्यसिद्धिं विधायाशु गणकार्यसमागतान् । सत्कार्य दानमानाद्यैर्महीनाथो विसर्जयेत् ॥७॥
SR No.022029
Book TitleLaghvarhanniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandracharya, Ashokkumar Sinh
PublisherRashtriya Pandulipi Mission
Publication Year2013
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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