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________________ १५८ लघ्वर्हन्नीति ET निन्दा पर उसका आधा (पचहत्तर मुद्रा-दण्ड) और शूद्र की निन्दा होने पर उस (पचहत्तर मुद्रा) का आधा साढ़े सैंतीस मुद्रा का दण्ड हो। वैश्याक्रोशे तु वैश्यस्य पणैस्त्रिंशद्भिरीरितः। शूद्रेण ब्राह्मणाक्रोशे दण्डः स्यात्ताडनादिभिः॥११॥ वैश्य द्वारा वैश्य की निन्दा करने पर तीस मुद्रा (पण) का दण्ड कहा गया है। शूद्र द्वारा ब्राह्मण की निन्दा करने पर ताडन(मारना, फटकारना) आदि द्वारा दण्ड देना चाहिए। क्षत्राक्रोशे शतं सार्द्ध वैश्याक्रोशे तदर्द्धकम्। शूद्रेण शूद्राक्रोशे तु पणानां पञ्चविंशतिः॥१२॥ शूद्र द्वारा क्षत्रिय की निन्दा पर एक सौ पचास, वैश्य की निन्दा पर उसका आधा (पचहत्तर) और शूद्र की निन्दा करने पर पच्चीस मुद्राओं (पणों) का (दण्ड हो)। जातिदोषं वदेन्मिथ्या ब्राह्मणे क्षत्रिये विशि। स तु दण्डमवाप्नोतिं वेदाग्निद्विपणैः क्रमात्॥१३॥ (यदि कोई) ब्राह्मण, क्षत्रिय तथा वैश्य के विषय में असत्य जाति दोष का कथन करे तो उस मनुष्य को अनुक्रम से ब्राह्मण (के विषय में चार, क्षत्रिय के विषय में तीन और वैश्य के विषय में) दो मुद्रा से दण्डित करे। धर्मार्थमुपदेशं हि. दातुं यस्याधिकारिता। तामुल्लंघ्योद्यतस्योपदेशे दण्डः शतैर्भवेत्॥१४॥ धर्म-अर्थ का उपेदश करने का जिसका अधिकार है उसका उल्लङ्घन कर उपदेश हेतु तत्पर (अनधिकारिक व्यक्ति) को सौ पणों का दण्ड हो। तिथिवारादिकं सर्वश्रुतं जातिं व्रतं मदात्। अन्यथा वदतो दण्डो जिह्वाछेदसमो भवेत्॥१५॥ मद के कारण तिथि, वार आदि सभी शास्त्र, जाति और व्रत का परिवर्तन करने वाले या मिथ्या कथन करने वाले को जिह्वा काटने जैसा दण्ड हो। काणान्धखञ्जकुष्ठयादीन् दोषदुष्टान् तथैवम्। यो बूते सदोषवाचा स स्याद्दण्यः पणैस्त्रिभिः॥१६॥ जो काने, अन्धे, लंगड़े, कुष्ठ रोगी आदि दोष से दूषित व्यक्तियों को उसी १. ०शेन तर्द्धकम् भ १, प १, प २, शेर्न तर्द्धकम् भ २॥
SR No.022029
Book TitleLaghvarhanniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandracharya, Ashokkumar Sinh
PublisherRashtriya Pandulipi Mission
Publication Year2013
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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