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________________ निक्षेपप्रकरणम् १४९ यः कृत्यस्यादिमन्तं च जानाति नितरां नरः। प्रत्यक्षदर्शी साक्षी स्यान्न परः श्रुतिमात्रतः॥२७॥ जो साक्षी प्रकरण को आरम्भ से अन्त तक भलीभाँति जानता हो ऐसा प्रत्यक्षदर्शी साक्षी हो दूसरा मात्र सुनने वाला साक्षी नहीं (हो सकता)। स साक्षी द्विविधः स्वाभाविको नैयोगिकः पुनः। तत्राद्यः षड्विधो ज्ञेयः परः पञ्चविधः स्मृतः॥२८॥ वह साक्षी दो प्रकार का होता है - स्वाभाविक और नैयोगिक, उसमें प्रथम (स्वाभाविक) छः प्रकार का जानना चाहिए और दूसरा (नैयोगिक) पाँच प्रकार का कहा गया है। ग्रामीणः प्राड्विवाकश्च भूपश्च व्यवहारिणः। राज्यस्यकाभिरतोऽर्थिना तु प्रहितश्च यः॥२९॥ कुल्याः कुल्यविवादेषु विज्ञेयास्तेऽपि साक्षिणः। न्यायोक्तगुणसम्पन्ना अर्थिप्रत्यर्थिमोदिनः॥३०॥ ग्राम प्रमुख, न्यायाधीश, राजा और व्यापारी, राज्यकार्य में संलग्न, वादी द्वारा प्रेषित, कुल के विवाद में पारिवारिक जन भी न्यायोक्तगुणों से सम्पन्न, वादी तथा प्रतिवादी को प्रसन्न करने वाले साक्षी होते हैं। रदितः स्मारितश्चैव यदृच्छागत एव च। गुप्तोऽथ साक्षिसाक्षी च एवं पञ्चविधः परः॥३१॥ दूसरे (नैयोगिक साक्षी) रदित, स्मारित, यदृच्छागत, गुप्त और साक्षिसाक्षी इस प्रकार पाँच प्रकार के होते हैं। स्वधर्मनिरताः शस्याः कुलीनाश्च तपस्विनः। दानिनो धनिनः पुत्रवन्तो बहुकुटुम्बिनः॥३२॥ निर्लोभाश्च विजातीया श्रुताध्ययनसंयुताः। शुद्धवंशोद्भवा वृद्धाः कार्या वै साक्षिणस्त्रयः॥३३॥ अपने धर्म में निष्णात, प्रशंसनीय, कुलीन, तपस्वी, दानशील, धनवान्, पुत्रवान, बड़े परिवार वाला, निर्लोभी, विजातीय, शास्त्राध्ययनरत और शुद्धवंशोत्पन्न तीन वृद्धों को साक्षी बनाना चाहिए। स्त्रीणां साक्ष्ये स्त्रियः कार्याः पुरुषाणां नरास्तथा। परोपकारनिरताः शत्रुमित्रसमेक्षणाः॥३४॥ १. ससा भ १, भ २, प १, प २॥
SR No.022029
Book TitleLaghvarhanniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandracharya, Ashokkumar Sinh
PublisherRashtriya Pandulipi Mission
Publication Year2013
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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