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________________ स्वामिभृत्यविवादप्रकरणम् १४१ यदि बछड़े आदि से रहित (गाय, भैंस, बकरी आदि) खेत में चरकर वहीं खेत में रहे तो पूर्व की अपेक्षा दुगुना दण्ड देना चाहिए और यदि (वे पशु) बछड़े आदि के साथ हों तो (पहले की अपेक्षा) चार गुना दण्ड देना चाहिए। (वृ०) क्षेत्ररान्तरविषयं पश्वन्तरविषयं च दण्डमाह - .. विशेष पशु तथा विशेष खेत के विषय में दण्ड का कथन - विवीतिऽपि हि पूर्वोक्त एव तासां दमः स्मृतः। खरोष्ट्रयोश्च दण्डः स्यात्पूर्वोक्तमहिषीसमः॥४॥ ___ (दूसरे) के बाड़े या चारागाह में भी उन पशुओं के चरने पर पहले की भाँति ही (पशु स्वामी को) दण्ड कहा गया है। गधे, ऊँट (आदि अन्य पशुओं के विषय . में) पहले प्ररूपित भैंस के बराबर दण्ड होता है। . . ... (वृ०) एवं च परक्षेत्रस्य नाशे गोमहिष्यादिस्वामिनां दण्डस्तूक्तः परं .. क्षेलस्वामिने तद्धानिनिमित्तं किं दातव्यं तदाह -.. ... इस प्रकार दूसरों के खेत की हानि होने पर गाय, भैंस आदि के स्वामियों को दण्ड तो कहा गया है परन्तु खेत के स्वामी को उस हानि के निमित्त क्या देना चाहिए, उसका वर्णन- .. ताड्यो गोपस्तु गोमी च पूर्वोक्तदण्डभागपि। . दद्यात् क्षेत्रफलं यद्विनष्टं क्षेत्राधिपाय तत्॥५॥ (पशुओं द्वारा खेत चरने पर) गोप या चरवाहों को मारना चाहिए, गाय आदि पशुओं का स्वामी पूर्व कथित दण्ड का भी भागी होगा। यदि खेत की फसल नष्ट हुई हो तो खेत के स्वामी को (नष्ट फसल के बराबर मूल्य) देना चाहिए। . (वृ०) क्षेत्रफलहानिनिदाने तु गवादिभक्षणावशिष्टपलालादिकं गोमिनैव ग्राह्यं मध्यस्थस्थापितमूल्यदानेन क्रीतप्रायत्वात्। खेत की फसल की हानि के निर्णय के लिए गाय आदि के खाने से बचे हुए पौधे के डण्ठल आदि पशुओं के स्वामी द्वारा ही ग्रहण करना चाहिए क्योंकि मध्यस्थ द्वारा क्षति का निर्धारित मूल्य खेत के स्वामी को देने के कारण (क्षतिग्रस्त भाग उसके द्वारा) लगभग क्रय ही कर लिया गया है। (वृ०) गोपदोषे स ताड्यस्तद्धानिं च गोमी देयात्। गोमिदोषेस दण्ड्योऽपि हानिदोऽपि चेति फलितार्थः। गोपालक का दोष होने पर वह दण्डनीय है और उसके कारण हुई क्षति (का मूल्य) पशु के स्वामी द्वारा दिया जाना चाहिए। तात्पर्य यह कि पशु के स्वामी का दोष होने पर वह दण्डनीय भी है और क्षति (का मूल्य) देने वाला भी है।
SR No.022029
Book TitleLaghvarhanniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandracharya, Ashokkumar Sinh
PublisherRashtriya Pandulipi Mission
Publication Year2013
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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