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________________ (xv) १०. अस्वामिविक्रय प्रकरण सामान्यतः धरोहर में रखी या चुराई सम्पत्ति को, वस्तु के वास्तविक स्वामी के परोक्ष में विक्रय करना अस्वामिविक्रय कहलाता था। मद्राङ्कित या मुद्रारहित निक्षेप, दूसरे की चोरी की गई वस्तु, उत्सव के निमित्त ली गई वस्तु, किसी की छूटी हुई वस्तु या प्रतिभूति को गुप्त रूप में विक्रय करना अस्वामिविक्रय माना गया है। दूसरे के धन का गुप्तरूप में दान देना भी इसी प्रकार के अपराध की श्रेणी में माना जाता था। इस प्रकरण में भगवान अनन्तनाथ की स्तुति के बाद स्वामी की आज्ञा के विना विक्रय, अल्प मूल्य में निर्धन से बहुमूल्य वस्तु लेने का दण्ड, अपनी आज्ञा के विना विक्रय की गई वस्तु को दूसरे के हाथ में पाना, विना स्वामित्व वाले धन का उपयोग जैसे विषयों का वर्णन किया गया है। ११. वाक्पारुष्य प्रकरण ___ इस प्रकरण में भगवान धर्मनाथ की स्तुति करते हुये वाक्पारुष्य का लक्षण, प्रयोग में न लाने वाले वचन, चतुर्वर्ण के मनुष्यों द्वारा भिन्न-भिन्न वर्गों के साथ कटु वचन पर दण्ड, उपदेशक के अधिकार का उल्लङ्घन करने पर दण्ड, विकल अङ्ग को लक्ष्यकर लोगों को काना, बहरा, लूला कहने वाले को दण्ड आदि विषयों पर प्रकाश डाला गया है। १२. समय-व्यतिक्रान्ति प्रकरण श्रेणियों, निगमों व पूगों के नियम समय या संविद रूप हैं। मनु, याज्ञवल्क्य ने इसे संविद व्यतिक्रम, बृहस्पति ने समयातिक्रम एवं कौटिल्य ने सम्यानपाकर्म आदि शीर्षक से इसका उल्लेख किया है। नियत की हुई व्यवस्था का नाम संविद या समय है। उसका उल्लङ्घन व्यतिक्रम माना जाता था। अनेक लोगों द्वारा किसी विशिष्ट नियम या रूढ़ि या परम्परा को स्वीकार करना संविद होता था। यह परम्परा दल के सम्पूर्ण सदस्यों को एकता के सूत्र में बाँधे रखती थी। इनका अनुकरण अनिवार्य था। बारहवें समय-व्यतिक्रान्ति प्रकरण में भगवान शान्तिनाथ की स्तुति करते हुये समयधर्म का लक्षण, समयधर्म के उल्लङ्घन पर दण्ड, साधारण द्रव्य हरण करने वाले को दण्ड, हितवादियों का वचन मानने की आवश्यकता पर बल, सभामण्डल का कर्त्तव्य, समुदाय के हितचिन्तकों का लक्षण, पृथक्-पृथक् व्यवसायियों का संरक्षण आदि विषयों का निर्देश किया गया है। १३. स्त्रीग्रह प्रकरण कामवासना के वशीभूत होकर किसी नारी का पर-पुरुष के साथ संयोग या
SR No.022029
Book TitleLaghvarhanniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandracharya, Ashokkumar Sinh
PublisherRashtriya Pandulipi Mission
Publication Year2013
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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