SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 169
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वेतनादानस्वरूपम् १३५ भाण्डं तु नाशयेत्किंचित्प्रमादात् भारवाहकः। तन्मूल्यप्रमितं द्रव्यं दापयेत्स्वामिनं नृपः॥२३॥ यदि भारवाहक असावधानी से बर्तन नष्ट कर देता है तो राजा उस (बर्तन) का मूल्य (भारवाहक से) स्वामी को दिलाये। प्रस्थाने नियतो भृत्यो लग्ने विघ्नकरो भवेत्। भृतिद्विगुणदण्ड्यः स दोषो हि बलवत्तरः॥२४॥ प्रस्थान तय होने पर नौकर के लग्न (नियत समय में) बाधक बनने पर उसे मजदूरी का दुगुना दण्ड देना चाहिए, निश्चय ही यह बड़ा अपराध है। दण्ड्यः सप्तमभागेन लग्नात्पूर्वं परित्यजन्। मार्गे तु त्रयभागेन विना व्याध्यादिकारणम्॥२५॥ लग्न (नियत समय) से पहले ही (कार्य) छोड़ने वाले मजदूर पर (निश्चित मजदूरी का) सातवाँ भाग दण्ड लगाना चाहिए। बिना बीमारी आदि के मार्ग में कार्य छोड़ने पर मजदूरी का एक तिहाई दण्ड लगाना चाहिए। मार्गाई समतिक्रान्तं कुर्वन्तं निजकर्म च। भृत्यं त्यजति यः स्वामी स दद्यात्सकलां भृतिम्॥२६॥ आधा रास्ता बीत जाने पर मजदूर अपना कार्य करते हुए यदि मजदूरी छोड़ देता है तो स्वामी उसे पूरी मजदूरी प्रदान करे। इत्येवं वेतनादानस्वरूपं चात्र वर्णितम्। संक्षिप्तं श्रुतपाथोधिमध्याद्रत्नमिवोद्धृतम्॥२७॥ समुद्र में रत्न निकालने के समान शास्त्र रूपी समुद्र में से यह 'वेतनादान' रूपी रत्न उद्धृत कर उसका स्वरूप यहाँ संक्षिप्त रूप में वर्णित किया गया। ॥ इति वेतनादानप्रकरणम्॥
SR No.022029
Book TitleLaghvarhanniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandracharya, Ashokkumar Sinh
PublisherRashtriya Pandulipi Mission
Publication Year2013
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy