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________________ (xiii) कन्या-विवाह में व्यय का प्रावधान, पिता के मरणोपरान्त माता का भाग, युगलिया के रूप में उत्पन्न बालकों में ज्येष्ठता, अग्रजा पुत्री से कनिष्ठ पुत्र की ज्येष्ठता, विधवा का अधिकार, विवाहिता पुत्री की मृत्यु के पश्चात् उसकी सम्पत्ति के स्वामित्व का निर्धारण, विभाजनोपरान्त उत्पन्न पुत्र का सम्पत्ति में स्वामित्व, चतुर्वर्ण स्त्रियों के पुत्र से उत्पन्न बालकों,का भाग, न्यासी का नामाङ्कन,न्यासी का दोषयुक्त होना, विधवा स्त्रियों द्वारा दत्तक ग्रहण का नियम, दत्तक ग्रहण विधि, जैन सिद्धान्त के अनुसार मान्य प्रमुख पञ्चविध पुत्र, जैनेतर परम्परा में मान्य अष्टविधपुत्रों का लक्षण, सम्पत्ति-प्राप्ति की दृष्टि से सम्बन्धों की वरीयता, सदाचारिणी एवं दुराचारिणी विधवा का सम्पत्ति में भाग, विधवा का सम्पत्ति में भाग, पुत्री के धन पर अधिकार, दीक्षा लेने वाले की सम्पत्ति पर भाइयों का अधिकार, दत्तक का विरुद्ध होना, पितामह की सम्पत्ति में कुटुम्बियों का अधिकार, औरस माता व पितृव्य (चाचा) की सम्पत्ति का स्वामित्व, सास तथा बहू का अधिकार, विधवा की पुत्री को सम्पत्ति का स्वामित्व, अन्यगोत्रियों को सम्पत्ति का अधिकार-निषेध, स्त्री-धन अधिग्रहण, देशकाल के अनुरूप भाग का विभाजन आदि विषयों पर प्रकाश डाला गया है। ५. सीमा-विवाद सीमा विवाद का सम्बन्ध जनपद, ग्राम, खेत या गृह की सीमा से था। क्षेत्र के अधिकार को लेकर सेतु (बाँध), केदार (मेंड़) और खेत की सीमा के घटने-बढ़ने के विवाद को क्षेत्रज विवाद कहते थे। सीमा से प्रयोजन दो नगर, दो ग्राम, दो खेत एवं दो गृहों के मध्य एवं मार्ग के किनारे पड़ने वाली उस रेखा, चिह्न, स्थान और वस्तु से होता था जहाँ एक का अधिकार समाप्त होकर दूसरों का प्रारम्भ होता था। तालाब, पुल, जलप्रवाह के स्थान के निर्धारण का विवाद सीमा विवाद प्रकरण में सम्मिलित होता था इस प्रकरण में भगवान पुष्पदन्त की स्तुति के बाद सीमा के स्वरूप, पञ्चविध सीमायें, षड्विध सीमा के विवाद, सीमा-विवाद पर न्यायाधीश का कर्तव्य, सीमा पर चिह्न बनाना, सीमा-निर्णय हेतु उपयुक्त साक्षी, सेतु तथा कुएँ का सार्वजनिक प्रयोग आदि विषयों का वर्णन है। ६. वेतनादानस्वरूपप्रकरण भृत्यों (नौकरों) को वेतन देने या न देने के विषय वेतनादान के व्यवहार विषय कहलाते थे। इस प्रकरण के आरम्भ में भगवान शीतलनाथ की स्तुति की गई है। पञ्चविध सेवकों एवं पञ्चविध दासों का लक्षण, दास को मुक्त करने की विधि, दास को दासत्व से मुक्त करवाने के उपाय, भृत्य को वेतन प्रदान करने की
SR No.022029
Book TitleLaghvarhanniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandracharya, Ashokkumar Sinh
PublisherRashtriya Pandulipi Mission
Publication Year2013
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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