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________________ दायभागप्रकरणम् ११३ (वृ०) ननु जनको मातृपुत्रो विरुद्धस्वभावत्वेन विभज्य पृथक् कृत्वा च परलोकं गतः पश्चात् पुत्रेऽपि निस्सन्ताने मृते तद्भागं को गृह्णीयादित्याह - __माता और पुत्र के विरुद्ध स्वभाव के कारण पिता, उनको विभाजित कर और अलग कर दिवङ्गत हो गया हो और बाद में पुत्र के भी सन्तान रहित मर जाने पर उसके हिस्से को कौन ग्रहण करे, इसका कथन - अपुत्रपुत्रमरणे तद्रव्यं लाति तद्वधूः। तन्मृतौ तस्य द्रव्यस्य श्वश्रूः स्यादधिकारिणी॥१११॥ यदि पुत्र की बिना पुत्र के मृत्यु हो जाये तो उसका धन वधू ग्रहण करती है। वधू की मृत्यु हो जाने पर श्वास उसके धन की अधिकारिणी होती है। ___ (वृ०) ननु पत्युपार्जितं धनं श्वश्रूसत्वे विधवावधूः व्ययीकर्तुं शक्नोति न वेत्याह पति द्वारा उपार्जित धन को सास के रहने पर विधवा वधू व्यय कर सकती है या नही, इसका कथन - रमणोपार्जितं वस्तु जङ्गगमस्थावरात्मकम्। देवयात्राप्रतिष्ठादिधर्मकार्ये च सौहृदे॥११२॥ श्वश्रूसत्त्वे व्ययीकर्तुं शक्ता चेद्विनयान्विता। कुटुम्बस्य प्रिया नारी वर्णनीयान्यथा न हि॥११३॥ विनयशील, परिवार की प्रिय और प्रशंसनीय नारी (विधवा पुत्रवधू) सास के रहने पर पति द्वारा उपार्जित चल-अचल सम्पत्ति का धार्मिक यात्रा, प्रतिष्ठादि धर्मकार्य तथा मित्रों के कार्य में व्यय कर सकती है (विनयशीलता आदि के) अभाव में नहीं। (वृ०) ननु काचिदप्रजा विधवा पुत्रीप्रेमतो दत्तकमनादाय मृता तदा तद्धनस्वामिनी तत्सुता जाता तस्यामपि परेतायां तद्धनस्वामी कः स्यादित्याह - कोई सन्तानरहित विधवा पुत्री के प्रेम के कारण विना पुत्र गोंद लिए ही मृत्यु को प्राप्त हो जाय तब उसके धन की स्वामिनी उसकी पुत्री हुई, उसके भी मरने पर उस धन का स्वामी कौन हो, यह प्ररूपण - अनपत्ये मृते पत्यौ सर्वस्य स्वामिनी वधूः। सापि दत्तमनादाय स्वपुत्रीप्रेमपाशतः॥११४॥ ज्येष्ठादिपुत्रदायादाभावे पञ्चत्वमागता। चेत्तदा स्वामिनी पुत्री भवेत्सर्वधनस्य च॥११५॥
SR No.022029
Book TitleLaghvarhanniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandracharya, Ashokkumar Sinh
PublisherRashtriya Pandulipi Mission
Publication Year2013
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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