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________________ लघ्वर्हन्नीति उस (दौहित्र) के अभाव में बन्धुज - चौदहवीं पीढ़ी तक स्वामी का वंशज अधिकारी होता है। तदभावे गोत्रजः, उस (बन्धुज) के अभाव में गोत्र में उत्पन्न हुआ पुरुष स्वामी होता है। पूर्वाभावे पर: स्वामी भवति । इस प्रकार पूर्व के अभाव में बाद वाला स्वामी होता है। एतेषामभावे ज्ञातिजनाः इनके अभाव में जाति के पुरुष अधिकारी होते हैं । सर्वेषामभावे नृपेण च मृतद्रव्यं धर्मकार्ये प्रयोक्तव्यम् । इन सबका अभाव हो तो राजा द्वारा मृतक के धन को धार्मिक कार्य में प्रयोग करना चाहिए। ननु विधवास्त्री ज्येष्ठदेवरादिभ्यो यदि प्रतिकूला कुशीला वा स्यात् तदा किं कर्त्तव्यमित्याह - — यदि विधवा स्त्री ज्येष्ठ ( पति के अग्रज) और देवर ( पति के अनुज) से विरुद्ध हो, अमर्यादित अथवा दुराचरण करने वाली हो तो क्या करना चाहिए, इसका कथन १०४ — प्रतिकूला कुशीला च निर्वास्या विधवापि सा । ज्येष्ठदेवरतत्पुत्रैः कृत्वान्नादिनिबन्धनम् ॥७५॥ यदि विधवा प्रतिकूल और कुत्सित आचरण वाली हो तो अन्न आदि का प्रबन्ध कर ज्येष्ठ, देवर और उस (विधवा) के पुत्रों द्वारा उसे (घर से) निष्कासित करना चाहिए। ( वृ०) अधिकारच्युतौ यदि कियता कालेन सा सुचरिता स्यात् तदा पुनरप्यधिकारं प्राप्नुयादिति विशेषः यदुक्तम् - १. अधिकार से रहित करने के कुछ समय बाद वह विधवा अच्छे आचरण वाली बन जाय तो दुबारा अधिकार प्राप्त करे यह विशेष है जैसा कि कहा गया है सुशीलाप्रजसः 'पोष्या योषितः साधुवृत्तयः । प्रतिकूला च निर्वास्या दुश्शीला व्यभिचारिणी ॥७६॥ योव्यपोषितः भ १, योव्यप्पोषितः भ २, प १, प२॥
SR No.022029
Book TitleLaghvarhanniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandracharya, Ashokkumar Sinh
PublisherRashtriya Pandulipi Mission
Publication Year2013
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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