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________________ दायभागप्रकरणम् १०१ (दत्तक पुत्र बनाने के पश्चात्) सवर्णा अर्थात् स्वजातीय विवाहिता स्त्री से पुत्र उत्पन्न हो तो वह दत्तक पुत्र चतुर्थ अंश का स्वामी होगा। यदि विजातीय स्त्री से पुत्र उत्पन्न हो तो (उत्पन्न पुत्र) मात्र अन्न, वस्त्र के दान का पात्र है। __(वृ०) ननु दत्तकग्रहणान्तरमौरसोत्पत्तावुणीषबन्धयोग्यता कस्येत्याशङ्कायामाह दत्तक ग्रहण करने के पश्चात् वैध पुत्र के उत्पन्न होने पर पगड़ी बाँधने का अधिकार किसका है इस आशङ्का के विषय में कथन - गृहीते दत्तके जात औरसस्तर्हि बन्धनम्। उष्णीषस्य भवेत्तस्य न हि दत्तस्य सर्वथा॥६६॥ तरीयांशं प्रदाप्यैव दत्तः कार्यः पृथक्तदा। पूर्वमेवोष्णीषबन्धे यो जातः स समांशभाक्॥६७॥ दत्तक ग्रहण करने के पश्चात् औरस (वैध या विवाहिता स्त्री से उत्पन्न) पुत्र हो तो उसी (पुत्र) को पगड़ी (मुकुट) बाँधा जाये, किसी भी रूप में दत्तक को नहीं। चौथा अंश देकर ही तब उसे पृथक् कर देना चाहिए। लेकिन पहले ही यदि दत्तकपुत्र को पगड़ी बाँध दी गई है तो उत्पन्न पुत्र बराबर के हिस्से का अधिकारी होगा। (वृ०) ननु पुत्राः कतिविधाः किञ्च तल्लक्षणानीत्याह - पुत्र कितने प्रकार के हैं और उनके लक्षण क्या हैं? यह कथन - औरसो दत्रिमश्चेति मुख्यौ क्रीतः सहोदरः। दौहित्रश्चेति गौणास्तु पञ्चपुत्रा जिनागमे॥६८॥ जिन प्रणीत आगम शास्त्र में पाँच प्रकार के पुत्र कहे गये हैं - (उनमें) वैधपुत्र एवं दत्तक मुख्य हैं और क्रय किया हुआ (क्रीत), सगा भाई (सहोदर) और . दौहित्र (पुत्री का पुत्र) ये गौण हैं। धर्मपत्न्यां समुत्पन्नः औरसो दत्तकस्तु सः। यो दत्तो मातृपितृभ्यां प्रीत्या यदि कुटुम्बजः॥६९॥ क्रयक्रीतो भवेत्क्रीतः लघुभ्राता च सोदरः। सौतः सुतोद्भवश्चमे पुत्रा दायहराः स्मृताः॥७०॥ पौनर्भवश्च कानीनः प्रच्छन्नः क्षेत्रजस्तथा। कृत्रिमश्चापविद्धश्च दत्तश्चैव सहोढजः॥७१॥ अष्टावमी पुत्रकल्पा जैने दायहरा न हि। तीर्थान्तरीयशास्त्रे च कल्पिताः स्वार्थसिद्धये॥७२॥
SR No.022029
Book TitleLaghvarhanniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandracharya, Ashokkumar Sinh
PublisherRashtriya Pandulipi Mission
Publication Year2013
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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