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________________ लघ्वर्हन्नीति वैश्य पिता की सवर्णा अर्थात् वैश्य स्त्री से उत्पन्न पुत्र सम्पूर्ण सम्पत्ति का स्वामी हो, शूद्रा स्त्री से उत्पन्न पुत्र सम्पत्ति का भागीदार नहीं है, वह केवल भोजन और वस्त्र का अधिकारी है। ९६ वर्णत्रये यदा दासीवर्गशूद्रात्मजो भवेत्। जीवत्तातेन यत्तस्मै दत्तं तत्तस्य निश्चितम्॥४१॥ तीनों वर्णों (ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य पुरुष ) से यदि शूद्र वर्ण की दासी से पुत्र उत्पन्न हो तो जीवित रहते हुए पिता द्वारा उसको जो दिया गया है वह निस्सन्देह उसका है। मृते पितरि तत्पुत्रैः कार्यं तेषां हि पालनम्। निबन्धश्च तथा कार्यस्तातं ते न स्मरन्ति हि ॥ ४२ ॥ निश्चय ही पिता की मृत्यु होने पर उसके पुत्रों द्वारा उनका पालन करना चाहिए। उसे सम्पत्ति आदि का दान इस प्रकार करना चाहिए जिससे वे पिता का स्मरण न करें । शूद्रस्य स्त्री भवेच्छूद्री नान्या तज्जातसूनवः । यावन्तस्तेऽखिला नूनं भवेयुः समभागिनः ॥४३॥ शूद्र की पत्नी शूद्र वर्ण की ही होती है उससे उत्पन्न पुत्र अन्य वर्ण के नहीं होते वे जितने भी हैं निश्चित रूप से समान भाग वाले होने चाहिए। १. (वृ०) ब्राह्मणस्य चातुर्वर्ण्यस्त्रीभ्यो यदि चत्वारः पुत्राः सञ्जातास्तदा तद्भागं चिकीर्षुः पिता स्वीयधनं दशधा विभज्य सवर्णापुत्राय भागचतुष्कं क्षत्रियाजाताय भगत्रयं वैश्याजाताय च भागद्वयं ददाति अवशिष्टमेकं भागं च धर्मकार्ये व्ययति शूद्रायां जातस्तु न भागभोग्यं केवलं भोजनवस्त्रयोग्य एव आद्यश्लोके क्रमशः इति पदमध्याहार्यमन्यत् सर्वं स्पष्टम्। ब्राह्मण की चारों वर्णों की स्त्रियों से यदि चार पुत्र उत्पन्न हुए हों तब उनके भाग करना चाहिए। पिता अपने धन का दस भाग कर सवर्ण (अर्थात् ब्राह्मणी) से उत्पन्न पुत्र के लिए चार भाग, क्षत्रिय स्त्री से उत्पन्न पुत्र के लिए तीनभाग और वैश्य स्त्री से उत्पन्न पुत्र के लिए दो भाग देता है। शेष एक भाग धर्मकार्य में व्यय करता है । शूद्रा से उत्पन्न पुत्र हिस्से का अधिकारी नहीं है । केवल भोजन वस्त्र काही अधिकारी है। प्रथम श्लोक में क्रमशः इस पद का अनुमान कर अन्य सब स्पष्ट है। ननु शूद्रेणाविवाहितदास्यामुत्पन्नस्य कीदृशो भागः स्यादित्याह दासदासीवर्गः भ १, भ २ प १ प २ ॥
SR No.022029
Book TitleLaghvarhanniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandracharya, Ashokkumar Sinh
PublisherRashtriya Pandulipi Mission
Publication Year2013
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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