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________________ (xi) युद्ध-काल में दूत का कार्य, युद्ध हेतु प्रस्थान का काल, चातुर्मास में युद्ध - निषेध, युद्ध के समय में राजा द्वारा धारण किये जाने वाले उपकरण, व्यूह-रचना, सेना - निवेश के लिये उपयुक्त स्थल, शत्रु के सम्मुख न आने पर राजा की कार्य-योजना, युद्ध में राजा का व्यवहार, स्थल-विशेष के अनुरूप शस्त्र चयन, दुर्ग स्थित शत्रु के साथ युद्ध विधि, विजयोपरान्त वीरों को उपहार और विजय के पश्चात् अपने देश वापस आने का वर्णन किया गया है। द्वितीय अधिकार के द्वितीय 'दण्डनीतिप्रकरण' का आरम्भ जिन सम्भवनाथ की स्तुति से हुआ है। जैन आगम वर्णित सप्तविध दण्डनीति, आरोपी के विरुद्ध वादी का अभियोग प्रस्तुत न होने पर भी प्रजापालन हेतु दण्डनीति के प्रयोग की प्रक्रिया, अपराध व देशकाल के अनुरूप दण्डनीति का प्रयोग, दण्डनीति विशेष स्वरूप, अन्यायपूर्वक किये गये दण्ड से प्राप्त धन का प्रजाहित में उपयोग, दण्ड प्रदान के दस स्थान, उत्तम दण्ड के लक्षण, अपराध के अनुसार दण्ड और अदण्डनीय व्यक्ति पर प्रकाश डाला गया है। तृतीय व्यवहाराधिकार के आरम्भ में भगवान अभिनन्दननाथ की स्तुति की गई है। इसमें कुल उन्नीस प्रकरण हैं। पहले व्यवहाराधिकार प्रकरण में व्यवहार का लक्षण, इसके द्विविध और अष्टादशविध भेद, वाद के आठ भेद, सभा में राजा का व्यवहार, वादी के द्वारा प्रदत्त आवेदन का स्वरूप, आवेदन की योग्यता - अयोग्यता का निर्णय, पक्षाभासयुक्त आवेदन सुनवाई के अयोग्य, पक्षाभास के प्रकार एवं स्वरूप, अनेक विषय युक्त आवेदन सुनने का निषेध, अनेक विषय युक्त आवेदन भी सुनने की विशेष स्थितियाँ, अधिकार पत्र के विना स्वयं को स्वजन बताने पर कार्यवाही आदि का वर्णन है। प्रतिवादी से उत्तर माँगने की विधि, उत्तर देने की अवधि, विशेष प्रकार के वादों में उत्तर देने हेतु समय का निषेध, सुनने योग्य उत्तर के चार रूप, न सुनने योग्य पञ्चविध उत्तर, न्यायाधीश का प्रतिवादी के द्वारा दिये गये उत्तर के विषय में वादी को सूचना, पञ्चविध पक्षहीनता का स्वरूप, वादी द्वारा प्रतिवादी के उत्तर की बातों का खण्डन, प्रतिवादी द्वारा वादी की बातों का पुनः उत्तर, उक्त चारों पत्रों का अवलोकन कर न्यायाधीश एवं सभासदों द्वारा निर्णय करने का निर्देश है। तत्पश्चात् सभासदों का लक्षण एवं संख्या, साक्षियों का लक्षण, साक्षियों को शपथ दिलाने से लाभ, साक्षियों को मान्य एवं अमान्य करने के आधार, वादियों के साक्ष्य के पश्चात् प्रतिवादियों का साक्ष्य, आत्मीय जनों के साक्ष्य पर आपत्ति, न्यायाधीश एवं सभासदों द्वारा सभी वक्तव्यों पर विचार, असत्य साक्ष्य देने वाले को दण्ड, दोनों पक्षों के साक्षियों के असत्य होने पर राजा का कर्त्तव्य, दोनों पक्षों के साक्षियों के अभाव में राजा के कर्त्तव्य आदि के निर्देश के साथ इस अधिकार को समाप्त किया गया है।
SR No.022029
Book TitleLaghvarhanniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandracharya, Ashokkumar Sinh
PublisherRashtriya Pandulipi Mission
Publication Year2013
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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