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________________ सम्भूयोत्थानप्रकरणम् ७९ ततः परमनायाते तत्सबन्धिनि मानुषैः। कृत्वाभियोगं सर्वे ते भागं कुर्वंति दण्ड्यताम्॥७॥ प्राप्नुवन्ति तदा सर्वे यथाभागं नृपः पुनः।। पत्रं प्रचारयेदेकाब्दं तत्स्वामिगवेषणे॥८॥ नायाति कोऽपि चेद्भूयो भूपस्तज्जातिभोजने। प्रतिष्ठादिविधौ सर्वद्रव्यं संयोजयेत्तदा॥९॥ उसके बाद पुनः (मृतक मनुष्य के सम्बन्धी के) न आने पर सभी भागीदार दावा रहित धन को विभाजित कर लेते हैं तो (वे अपने-अपने भाग के अनुपात में दण्ड के पात्र होंगे। राजा पुनः सभी (सदस्यों से उनके) अंश के अनुसार (धन) प्राप्त करते हैं। उस धन के स्वामी की गवेषणा के लिए एक वर्ष की अवधि तक पत्र द्वारा घोषणा करनी चाहिए। इसके पश्चात् भी किसी के न आने पर राजा उसके जातियों के भोजन तथा प्रतिष्ठा आदि विधि में समस्त धन को लगाये। आगतश्चेत्कोऽपिभूपो निश्चित्य सकलं धनम्। दापयेद्रक्षकेभ्यश्च चतुर्थांशं प्रदाप्य वै॥१०॥ यदि कोई भी (उत्तराधिकारी) आया हुआ हो तो राजा निश्चय कर सम्पूर्ण धन का चतुर्थ भाग (धन) रक्षक को देकर (शेष) उसको सौंप दे। गौर्वत्समिव भूपोऽपि प्रीत्या स्वाः पालयेत्प्रजाः। अन्यायेन च द्रव्यार्थं चित्ते नो 'लोभमाचरेत्॥११॥ सम्भूयोत्थानमेतश्च संक्षेपादत्र वर्णितम्। यतः सर्वैः प्रतिज्ञातकार्ये रीतिर्नलंघ्यते॥१२॥ जिस प्रकार गाय अपने बछड़े का पालन करती है उसी प्रकार प्रीतिपूर्वक राजा को भी अपनी प्रजा का पालन करना चाहिए। अन्याय से धन प्राप्त करने के लिए मन में लोभ का आचरण नहीं करना चाहिये। यहाँ समूह अथवा मण्डल व्यापार संक्षेप में निरूपित किया गया क्योंकि सभी प्रतिज्ञा संविदा के अनुसार कार्य करें और रीति बाधित न हो। ।। इति सम्भूयोत्थानप्रकरणम्।। १. कुर्वेनिदण्ड्य ताम् भ १, भ २, कुर्वनिदण्ड्यताम्।। २. लोभसमाचरेत् भ १, भ २, प १, प २।।
SR No.022029
Book TitleLaghvarhanniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandracharya, Ashokkumar Sinh
PublisherRashtriya Pandulipi Mission
Publication Year2013
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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