SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 107
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ऋणादानप्रकरणम् में कुछ न दिया हो तो पुनः वृद्धि की वृद्धि हो और डेढ़ वर्ष बीत जाने ऋण लिया हुआ धन दो गुना हो जाता है। ( वृ०) मृते स्वामिनि तत्पुत्र ऋणं देयादित्याह स्वामी की मृत्यु हो जाने पर उसका पुत्र ऋण का भुगतान करे, इसका कथन ७३ मृते स्वामिनि तत्पुत्रो लेखं दृष्ट्वाधमर्णकः । स्वतातकरमुद्राङ्कं स्वामी के मरने पर उसका पुत्र पिता के हाथ के मुद्राङ्कित लेख को देखकर धनवान को धन वापस करे । द्रव्यमृक्थिनमर्पयेत् ॥५०॥ (वृ०) मद्यादिकृतर्णं पुत्रैर्न देयमित्याह पिता द्वारा मद्यपान हेतु ग्रहण किये गये ऋण को पुत्र द्वारा नहीं वापस करना चाहिए - सुराकैतवद्यूतार्थं परस्त्रीहेतुकं तथा । ऋणं पितृकृतं पुत्रो देयान्नैव कदाचन॥५१॥ आर्तातिवृद्धबालास्वाधीनोन्मत्तकमद्यपैः I याच्यते ऋणं नैव धनी दद्यात्कदापि तान् ॥५२॥ मद्य (पान), ठगाई ( एवं), द्यूत के लिए तथा परायी स्त्री के लिए पिता द्वारा किया गया ऋण पुत्र को कभी नहीं वापस करना चाहिए। रोगी, अतिवृद्ध, बालक, पराधीन, उन्मत्त, मद्यपान करने वालों के द्वारा यदि ऋण माँगा जाता है तो कभी धनी उनको ऋण न दे। (वृ०) कुटुम्बपालननिमित्तं पितृकृतमृणं तन्मृतौ पुत्रैरेव देयमित्याह परन्तु कुटुम्ब पालन हेतु पिता द्वारा लिया गया ऋण पुत्रों के द्वारा देय है, इसका कथन कुटुम्बार्थं कृतं पित्रा ज्येष्ठभ्रात्रा ऋणं यदि । तयोर्मृत्यौ समत्वेन दद्युस्ते सर्वबान्धवाः॥५३॥ यदि पिता या ज्येष्ठ भ्राता द्वारा परिवार के लिए ऋण लिया गया है तो उन (दोनों की मृत्यु होने पर सभी भाई बराबर हिस्से में ऋण चुकायें । ( वृ०) विभक्ता वा अविभक्ता वा इति शेषः । चाहे विभाजन हुआ हो अथवा नहीं हुआ हो । स्वाम्यसत्वे दासकृतं ऋणं स्वामी देयादित्याह
SR No.022029
Book TitleLaghvarhanniti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandracharya, Ashokkumar Sinh
PublisherRashtriya Pandulipi Mission
Publication Year2013
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy