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________________ श्रावकप्रज्ञप्तिः ६३-६४ तत्त्वार्थों के नामोल्लेखपूर्वक जीव के भेद-प्रभेद । ६५ संसारी जीवों की प्ररूपणामें भव्यादि द्वारों का निर्देश । ६६-६७ भव्य द्वार में भव्य - अभव्य जीवों का स्वरूप । ३८ ६८-६९ आहारक द्वार में आहारक - अनाहारक जीवों का निर्देश करते हुए उनके काल का उल्लेख । ७०-७१ पर्याप्त द्वार में अपर्याप्त और पर्याप्त जीवों का उल्लेख । ७२-७३ शुक्लपाक्षिक द्वार में शुक्लपाक्षिक व कृष्णपाक्षिक जीवों का स्वरूप व उत्पत्ति-स्थान । ७४-७५ सोपक्रम द्वार में निरुपक्रम और सोपक्रम जीवों का उल्लेख । ७६-७७ मुक्त जीवों के तीर्थंकरादि भेदों का उल्लेख । ७८ धर्म, अधर्म, आकाश और काल इन चार अजीवों का स्वरूप । ७९ आस्रव का स्वरूप व उसके दो भेद । बन्ध का स्वरूप व उसके चार भेद 1 ८० ८१ संवर का स्वरूप व उसके हेतु । ८२ निर्जरा का स्वरूप । ८३ मोक्ष का स्वरूप । ८४-८५ इन तत्त्वार्थों के श्रद्धान- अश्रद्धान से होनेवाले गुणों व गुणाभाव की सूचना । ८६ सम्यक्त्व के शंकादि पाँच अतिचार । ८७ शंका, कांक्षा और विचिकित्सा का स्वरूप । ८८ परपाषण्डप्रशंसा और परपाषण्डसंस्तव का स्वरूप । ८९-९१ शंका की अतिचारता को प्रकट करते हुए उससे सम्भव पारलौकिक और ऐहिक दोषों का दिग्दर्शन | ९२-९३ कांक्षा आदि शेष चार की अतिचारता को प्रकट करते हुए सोदाहरण उनके दोषों का दिग्दर्शन । ९४-९५ साधर्मिक - अनुपबृंहण आदि अन्य अतिचारों की भी सूचना । ९६ मुमुक्षु को इन अतिचारों के छोड़ देने की प्रेरणा । ९७ सम्यक्त्वरूप शुभ परिणाम के होने पर संक्लेश के अभाव में अतिचारों की असम्भावनाविषयक शंका । ९८-९९ उक्त शंका का समाधान । १०० - १०५ इस प्रसंग में शंकाकार की प्रतिशंका का समाधान करते हुए प्रमाद के छोड़ देने की प्रेरणा । १०६-१०७ पाँच अणुव्रतों का निर्देश करते हुए प्रथम अणुव्रत का स्वरूप एवं संकल्प तथा आरम्भ से होनेवाले वध में संकल्प से उसके छोड़ देने की प्रेरणा । १०८ अणुव्रतग्रहण की विधि का निर्देश करते हुए उसके पालन की प्रेरणा । १०९-११० शंकाकार द्वारा देशविरति परिणाम के होने व न होने पर दोनों पक्षों में दोषोद्भावन । १११-११३ शंकाकार द्वारा उद्भावित दोषों का निराकरण । ११४- ११८ प्रथम अणुव्रत में स्थूलप्राणातिपात का प्रत्याख्यान करानेवाले साधु के सूक्ष्मप्राणातिपात में अनुमति के होने की शंका को उठाते हुए उसका समाधान । ११९-१२३ सामान्य से त्रसघातविरति के कराने पर त्रसकाय से स्थावरकाय को प्राप्त हुए जीवों के वध से व्रत के भंग होने की सम्भावना के कारण सामान्य से करायी गयी त्रसघातविरति को सदोष बतलानेवालों का पूर्वपक्ष ।
SR No.022026
Book TitleSavay Pannatti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaribhadrasuri, Balchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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