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________________ २४० सव्वं भंते पाणाइवायं सव्वे जीवा न इंतव्वेत्यादि समितिगुप्तिधर्मानुप्रेक्षा सीयालं भंगसयं सीसमुरोदरपिट्ठी पोहा नि स्पर्शरसगन्धवर्ण गाथक २५८ २८३ २८५ २८८ २९१ २९१ २९१ २९१ २९१ २९२ ३१९ ३२२ ३२३ ३२४ ३२६ श्रावकप्रज्ञप्तिः इनके अतिरिक्त गाथा ९१ और ९३ की टीकामें क्रमसे शंका, कांक्षा, विचिकित्सा या विद्वज्जुगुप्सा, परपाषण्डप्रशंसा और परपाषण्डसंस्तव इन सम्यक्त्वके अतिचारोंके स्पष्टीकरणमें जो कथाएँ दी गयी हैं वे किसी प्राचीन ग्रन्थसे लेकर दी गयीं दिखती हैं । उनका सन्दर्भ अत्यन्त अशुद्ध दिखता है । इसी प्रकार प्राणातिपातविरमण आदि व्रतोंके अतिचारोंके स्वरूपको स्पष्ट करते हुए किसी प्राचीन आचारविषयक ग्रन्थसे 'तदत्रायं पूर्वाचार्योक्तविधिः' इत्यादि प्रकारसे सूचना करते हुए कुछ सन्दर्भ दिये गये हैं। यथा २४३ ३४५ एत्थ पुण सामायारी.... सर्पोदाहरणेन विषोदाहरणेन च भाव पुण इमो एत्थं सामायारी... ८१ ३३० एत्थ भावणा... एत्थ सामायारी.... २० १३ ७८ सन्दर्भको सूचना ---- तदत्रायं पूर्वाचार्योक्तविधिः .. तत्र वृद्धसंप्रदायः तथा च वृद्धसंप्रदायः "" भावार्थस्तु वृद्धसंप्रदायादेव अवसेयः । स चायम् इह च सामाचारी ... एत्था सामायारी... X X x ( मुहेण व अरिमाणेइ. ) एत्य सामाचारी ... एत्थं वि सामायारी" त. सूत्र U
SR No.022026
Book TitleSavay Pannatti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaribhadrasuri, Balchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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