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________________ - २९१] तृतीयगुणवतप्ररूपणा १७५ कंदप्पं कुक्कुइयं मोहरियं संजुयाहिगरणं च। उवभोगपरीभोगाइरेयगयं चित्थ वज्जई ॥२९१॥ इति पदघटना। पदार्थस्तु कंदर्पः कामस्तद्धेतुविशिष्टो वाक्प्रयोगोऽपि कंदर्प उच्यते, रागोद्रेकात्महासमिश्रो मोहोद्दीपको नर्मेति भावः। इह च सामाचारी-सावगस्स अट्टहासो न वट्टइ, जइ नाम हसियव्वं तउ इसिं चेव हसियव्वं ति ॥१॥ कौत्कुच्यं कुत्सितसंकोचनादिक्रियायुक्तः कुत्कुचः, तस्य भावः कौत्कुच्यं अनेकप्रकारमुख-नयनौष्ठ-कर-चरण-भ्रूविकारपूर्विका परिहासादिजनिका भांडादीनामिवै विडंबनक्रियेत्यर्थः। एत्थ सामायारी-तारिसगाणि भासिउ' न कप्पंति जारिसेहिं लोगस्स हासो उपज्जइ। एवं गतीए ठाणेण वा ठाइउति ॥२॥ मौखयं धाष्टर्यात्प्रायोऽसत्यासंबद्धप्रलापित्वमुच्यते मुडेण वा अरिमाणेइ जहा कुमारामच्चेणं सो वारहडो विसज्जिओ रन्नो णिवेदियं ताए जीवियाए वित्ती दिन्ना अन्नदा रुटेण मारिओ कुमारामच्चो ॥३॥ संयुक्ताधिकरणम् अधिक्रियते नरकादिष्वनेनेत्यधिकरणं वास्युदूखल-शिलारपुत्रकं गोधूमयंत्रकादिषु संयुक्तमर्थक्रियाकरणयोग्यम्, संयुक्तं च तदधिकरणं चेति समासः। एत्थ सामायारीसावगेणं संजताणि चेव सगडाईणि नधरयव्वाणि । एवं वासी-परसमाइ विभासा ॥४॥ उवभोगपरिभोगाइरेगयत्ति-उपभोगपरिभोगशब्दार्थों निरूपित एव, तदतिरेकस्तदधिकभावः, एत्थ वि कन्दर्प, कोत्कुच्य, मौखर्य, संयुक्ताधिकरण और उपभोग-परिभोगपरिमाणातिरेकता ये पांच प्रकृत अनर्थदण्डव्रतके अतिचार हैं, जिनका परित्याग करना चाहिए। विवेचन-(१) कन्दर्प नाम कामका है, उसके आश्रयसे जो विशिष्ट वचनोंका प्रयोग किया जाता है उसे कन्दर्प कहा जाता है। अभिप्राय यह है कि रागको उत्कटतासे कामोद्दीपक हास्यमिश्रित, अशिष्ट वचन बोलना, इसका नाम कन्दर्प है, दूसरे नामसे इसे नर्म भी कहा जाता है। यहां सामाचारी-श्रावकको ठहठहा मारकर जोरसे हंसना नहीं चाहिए। यदि हंसना ही है तो मन्दरूपमें हंसना योग्य है, जिसे स्मित कहना चाहिए। ऐसा न करनेपर व्रत इस कन्दर्प नामक प्रथम अतिचारसे दूषित होता है। (२) कौत्कुच्य-भांडों आदिके समान अनेक प्रकारसे मुख, नेत्र, ओष्ठ, हाथ-पांव, और भ्रू आदिको विकारयुक्त करके जो परिहासादिजनक शरीरकी चेष्टा (विडम्बना ) की जाती है उसे कौत्कुच्य कहा जाता है। यह अनर्थदण्डव्रतका दूसरा अतिचार है। यहां सामाचारी-श्रावकको ऐसे वचन नहीं बोलना चाहिए जिनसे लोगोंको हास्य उत्पन्न हो । इसी प्रकारसे ऐसी गति, स्थिति और बैठने आदिको क्रियाको भी नहीं करना चाहिए। ( ३ ) मौखर्य-ढीठपनेसे प्रायः जो असत्य, असम्बद्ध और अनर्थक बकवाद किया जाता है; इसे मौखर्य कहते हैं। यह अनर्थदण्डव्रतका तीसरा अतिचार है। [ यहां सामाचारी-] अथवा मुखसे 'शत्रुको लाओ,' जैसे कुमारामात्यने उस वारहडको विदा किया और राजासे निवेदन किया कि उसे जीविकाके लिए वृत्ति दो। दूसरे दिन क्रोधित होकर राजाने कुमारामात्यको मार डाला ? (४) संयुक्ताधिकरण-'अधिक्रियते नर-नारकादिष्वनेनेत्यधिकरणम्' इस निरुक्तिके अनुसार जो मनुष्य व नारक आदि गतियोंमें अधिकृत किया करता है, उसका नाम अधिकरण है। बसूला, उदूखल ( ओखली ), शिलारपुत्रक और गेहूंका यन्त्र ( हल-बखर आदि ); इनको अर्थक्रियाके योग्य बेंट और मूसल आदि उपकरणोंसे जोड़कर रखना; इसका नाम संयुक्ताधिकरण है। यह १. अ संजुत्ताइकरणं वा । २. अ परिभोगरेवयं चेव वज्जेज्जा ( अस्या गाथायाः संस्कृतछायाप्यत्रोपलभ्यते । ३. अहासादिजनितादीडादीनामिव । ४. अविसज्जन्न रन्नो णिविदियं । ५. भ पुत्रकगोधम ।
SR No.022026
Book TitleSavay Pannatti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaribhadrasuri, Balchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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