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________________ ४५ शीलांगादि रथसग्रह. ॥ ४५ ॥ BarteBOORPraraGROO ज्ञानविदपि च मनसा, पिंमस्थध्यान सामायिकव्रतलीनः ॥ नमस्कार सहितमनागतं, कदा करिष्यामि नावेन् ॥१॥ मिस्थादि चार ध्यानमा रहेलो अने सामायिकादि पांच चारित्रयी युक्त एवो हुँ ज्ञाननो जाणनार पण नमस्कार (नोकारसी) सहित अनागत पच्चख्खाण क्यारे (मनथी) करीश ? ॥१॥ अणागय अइकंते कोडी नियट्टि सागार अणागारा॥ परिमाण निरवसेसं, संकेअं अद्धाइयं दसहा ॥२॥ अनागत मनिक्रान्तं, कोटि नियन्त्रित साकार मनाकारम् ॥ परिमाण निरवशेष, सांकेतं अर्यातीतं दशवा ॥२॥ दस जातर्नु पच्चरकाण . अनागत, अतिक्रान्त, कोटि सहित, नियंत्रित, सागार (आगार सहित) अनागार (आगार रहित), परिमाणकृत, निरवशेष, सांकेतिक (संकेतवालु) अने अद्धा पच्चरकाण. ॥२॥ +MEAKENLEAMKARENCE २० धर्मागरथनी अंदर आवेली गाथाओना अघरा शब्दोना अर्थ. नाण-ज्ञान मणगुत्तो-मनगुप्तिवाळो । जुत्तो-युक्त | पढम-पहेलु जुगो-युक्त वयगुत्तो-वचनगुप्तिवालो - शील-शीयल वय-व्रते (करीने) दिछी-दृष्टि, समकितदृष्टि तणुगुत्तो-कायगुप्तिवाळो तवेण-तपे करीने सुद्धो-शुद्ध चरण-चारित्र दाण-दान |बीय-बीजा :DGROGRAILOGreeLoote | भाव-भाव
SR No.022024
Book TitleShilangadi Rath Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages78
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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