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________________ ॥ ४॥ शीलांगादि रयसंग्रह. ॥२४॥ B0RRRRRR ऊर्ध्वदिसि नारीजीवो, दानंवितरति विश्रोतविषयमना: ॥ पृथिवी जीवान् रदान, दान्तिक्षमो यावजीवमपि ॥१॥ पांच इन्डीयना विषयश्री विरक्त, दमामां समर्थ, जीवे त्यां सुधी पृथ्वी विगेरेना जीवाने हैरक्षण करनार, उर्ध्व दिशामां नारीनो जीव दान आपे ले. ॥१॥ खंतिखमो समद्दवो, सअजवो समुत्तिणोउ तवजुत्तो॥ सस्संजमो सच्चजुओ, सोअजुओ अकिंचणो बंभं ॥२॥ दान्तिक्षमः समार्दवः, सार्जव: समुक्ति स्तपोयुक्तः ॥ ससंयमः सत्ययुतः शौचयुतोऽकिञ्चनोब्रह्म (धरश्च)॥२॥ कमावसे युक्त, मार्दव सहित, आर्जव सहित, मुक्तिसहित तपथी युक्त, संयमवाळो, साचुं है | बोलनार, शौचयुक्त, निष्परिग्रही अने ब्रह्मचारी. ॥५॥ BRLDRORDarBOORBORAN ११ मा संयमरथना चित्रमा आवेली गाथाओना अघरा शब्दोना अर्थ. हिंसइ-हिंसा करे हिंसा-हिंसाने उवेह-उपेक्षा भासाए-भाषा समितिवडे न-नहि अणुमन्नइ-अनुमोदना करे | पमज-प्रमार्जना एसणाए-एषणा समितिवडे सयं-पोते पेहा-प्रेक्षा पारिहावणिआ-परिष्ठापनिका सुगह मुख्खे-जयणाए लेवू हिंसावइ-हिंसा करावे.. .संजम-संजम मु-सारी रीते मुक नो-नहि जुओ-युक्त | इरियाए-र्या समितिवडे परिवओ-पारिष्ठापनिका
SR No.022024
Book TitleShilangadi Rath Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages78
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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