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________________ शीलांगादि रथसंग्रह. ॥७॥ DBOORDEGOR. saree विरिय-वीर्यवल (ना) वाउ-चायग (ना) अरिह-अरिहंतनी ओहि-अवधिज्ञानीओनी आलोइय-आलोवीने वण-वनस्पति (ना) समख्खं-समक्ष मणजीण-मनःपर्यवज्ञानी पुढवि-पृथ्वीकाय (ना) बेइंदी-बेरिद्रि जीए-जीवोने खमावेमि-खमावुछ तेइंदी-तेरिदि मुयजीण-श्रुतकेवळीनी आउ-अपकाय (ना);पा- चरिंदी-चउरिद्रि सिद्ध-सिद्धोनी साहू-साधु महाराज (नी)। 'णी (ना) पंचिंदी-पंचेंद्रि गणहर-गणधरोनी देव-देव तेउ-अग्नि (ना) अजीए-अजीवोने केवली-केवळज्ञानीओनी | अप्प-आत्मानी त्रीजा खामणा रथना चित्र बहारनी बुटी गाथाना शब्दोना अर्थ. कयचउसरणो-चार शरण समख्खं-समक्ष __आराधनाने | पुण-वळी करनार खमावेमि-खमावुछ ॥१॥ | परम-मोटो, उत्कृष्ट ॥२॥ सहसा-हजार नाणी-ज्ञानी अरिहंत-अरिहंत भगवान चउ-चार अट्ठारस-अढार नियमिय-नियमित कर्यु सिद्ध-सिद्धभगवान सरण-शरण हवंति-थाय छे छे जेणे. साहू-साधुओने नाण-ज्ञान गणहर-गणधर' असणो-अशन, भोजन धम्मायरिए-धर्माचार्योने असणाइयारं-अशनना अ- | ओहि-अवधिज्ञानी नाण-ज्ञानना य-वळी तिचारने य-अने अइयार-अतिचार संघउ-संघोने पुढवाइ-पृथ्वी आदिक मणयजीणाणं-मनःपर्यवज्ञानी अलोइअ-आलोवीने वंदे-नमस्कार करुंछु जीवगाइणं-जिवादिकोना | सुयजीण-श्रुत केवळी पुढवि-पृथ्वीकायना वुच्छामि-कहीश आराहणगाणं-आराधन-क- देव-देवनी- . . . . जीए-जीवोने समासेणं-संक्षेपे, टुंकामा रनाराओने | अप्प-आत्मा अरिहंत-अरिहंतनी पज्जंताराहणं-मरण वखतनी रासीणं-समूहने | सख्खीहिं-साक्षीए ॥४॥ RRRRRRROGRA ॥३॥
SR No.022024
Book TitleShilangadi Rath Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages78
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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