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________________ शीलांगादि रथसंग्रह. ॥ ६ ॥ आवस्सही - आवसिहि, उपाश्रयनी बहार जतां आवस्तिही कवी ते निस्सिहि-निस्सिहि-बहारथी अंदर आवत बहारनुं काम निषेधवारूप निस्सिहि कवी ते. आपुच्छकारी - आहारादिक गोचरी माटे एकवार रजा मागवी ते पडिपुच्छं-- एक करतां वधारेवार पुछ ते च्छंदा - आहार लावी गुरुदिकने बतावो मांथकवा क निमंत-सार्मिकोने निमंत्र करते उवसंपयाकारी - ज्ञान भ माटे पोताना गुरु निश्राये पण ते ॥ श्री दसविध चक्रवाळ सामाचारिरथ ॥ २ ॥ मणगुत्तो सन्नाणी, पसमिय कोहो य इरिय समिओय ॥ पुढवीजीए रख्खंतो, इच्छाकारी नमो तस्स ॥ १ ॥ मनोगुप्तः सञ्ज्ञानी, प्रशमित क्रोध श्रेर्या समित च ॥ पृथिवी जीवान् रक्षन् इच्चाकारी नमस्तस्मै ॥ १ ॥ मनोगुप्तिवमे सहित, सम्यक्ज्ञानवाळो, प्रशांत वे क्रोधादि जेना, इर्यासमितिवाळा, इछाकार समाचारि साचवतो, पृथिवी विगेरेना जीवनुं रक्षण करतो जे, (होय) तेने नमस्कार था ॥ १ ॥ गुत्ती नाणाइतिगं, पसमिय कोहाइ समिइ पणगं च ॥ भोमाई रख्खंतो, चक्क समायारि जुत्तो य ॥ २ ॥ gree Q ॥६॥
SR No.022024
Book TitleShilangadi Rath Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages78
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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