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________________ ॥पञ्चरकाण रय॥१॥ नाग विकषि यं मपासा, पिंडनमाण सामाइप चय लोगोश नवकार सहिय मुए।गय, कया करिस्सामि भावेण ॥१॥ अपागय अइने, कोडी नियट्टि सागार अपागारा॥ परिमाए. निरपसेसं, संके अध्धाइयं दसहा ॥२॥ JEAAFTERTAIHIFATAFRI नासचिन चि ६००० भागमचिन गि ००० सुविनावि ६००० CWavirvison माला २००० वयसा २००० नाएगी २००० ५०० पिंडवाणी परत द्या रुसबाग रुवानीय ना५०० ५०० विअ ययलीगी परि हारि वय सहमसंपराज अहरकाय व लीही २०० चयली यत्रीण अएसिपा अभियगह लीलो १०० असत्ता संकेयनिय पर १. बिदायकवाय .. याकरिस्सामिमा नवकार सहि पोरसि सहिय पुरिमटू सहित अ.१० कासग अकठाएका प्रचिल १० भाथा.७ अखागय क्या अइन कया क कोरिसहि को नियहि कया कारस्सामि रिस्सामि भावेएन करिस्सामि भाकरिस्सामि भायेग १ वेग ३ भावेए.४ (सागार या करिस्सामि भावेग ५ Fमागारकया/परिमाणकनिरपरेर सामि भा//कथा करस्सास्स्सिामिभा परा.
SR No.022024
Book TitleShilangadi Rath Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages78
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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