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________________ ५।२६-२८ ] पाँचवाँ अध्याय ६९७ है क्योंकि उसमें स्पर्श गुण पाया जाता है जैसे कि घटमें। खाए हुए स्पर्शादिवाले भोजनका वात पित्त और श्लेष्म रूपसे परिणमन होता है । वात अर्थात् वायु । अतः वायुको भी स्पर्शादिमान् मानना चाहिए। अतः नैयायिकका यह कथन खण्डित हो जाता है कि - "पृथ्वीमें चार गुण जल में गन्धरहित तीन गुण अग्निमें गन्धरसरहित दो गुण तथा वायुमें केवल स्पर्श गुण है । ये सब पृथिवीत्व जलत्व आदि जातियों से भिन्न-भिन्न हैं । " स्कन्धों की उत्पत्तिका कारण भेदसंघातेभ्य उत्पद्यन्ते ॥ २६ ॥ भेद, संघात और भेदसंघात से स्कन्ध होते हैं । ११-४. बाह्य और अभ्यन्तर कारणोंसे संहत स्कन्धों के विदारणको भेद कहते हैं । भिन्न भिन्न पदार्थोंका बन्ध होकर एक हो जाना संघात है । सूत्रमें बहुवचन देनेसे ज्ञात होता है कि भेदपूर्वक संघात अर्थात् 'भेदसंघात ' भी स्कन्धोत्पत्तिका स्वतन्त्र कारण है । 'उत्पद्यन्ते' में उत्पूर्वक पदि धातुका अर्थ जन्म होता है । उत्पद्यन्ते अर्थात् जन्म लेते हैं । १५. 'भेदसंघातेभ्यः' यह हेतुनिर्देश उत्पत्तिकी अपेक्षा है । निमित्त कारण और हेतु में सभी विभक्तियाँ प्रायः होती हैं । अतः 'भेद संघातरूप कारणों से स्कन्ध उत्पन्न होते हैं' यह अर्थ फलित हो जाता है । दो परमाणुओंके संघात से द्विप्रदेशी स्कन्ध उत्पन्न होता है । द्विप्रदेशी स्कन्ध तथा एक परमाणु संघात से या तीनों परमाणुओं के संघात से त्रिप्रदेशी स्कन्ध उत्पन्न होता है । दो द्विप्रदेशी, एक त्रिप्रदेशी और एक अणु, या चार अणुओंके सम्बन्धसे एक चतुःप्रदेशी स्कन्ध होता है। इस तरह संख्येय असंख्येय और अनन्त प्रदेशों के संघातसे उतने प्रदेशवाले स्कन्ध उत्पन्न होते हैं । इन्हीं के भेदसे द्विप्रदेशपर्यन्त स्कन्ध उत्पन्न होते हैं' इस तरह एक ही समय में भेद और संघातसे- किसीसे भेद और किसीसे संवात होनेपर द्विप्रदेशी आदि स्कन्ध उत्पन्न होते हैं। की उत्पत्तिका कारण भेदादणुः ।। २७ ।। अणु भेद से ही होते हैं । ६१. 'भेदसंघातेम्य उत्पद्यन्ते' इस सूत्र से स्कन्धकी उत्पत्ति सूचित होनेसे अर्थात् ही ज्ञात हो जाता है कि 'अणु भेदसे होता है' फिर भी इस सूत्र के बनानेसे यह अवधारण किया जाता है कि अणु से ही उत्पन्न होता है । जैसे कि 'अपो भक्षयति' में एवकारका अर्थ अवधारण आ जाता है । भेदसंघाताभ्यां चाक्षुषः ॥ २८ ॥ अनन्तानन्त परमाणुओंसे उत्पन्न होकर भी कोई स्कन्ध चाक्षुष होता है तथा कोई अचाक्षुष 'जो अचाक्षुष स्कन्ध है वह चाक्षुष कैसे बनता है' इस प्रश्नका समाधान इस सूत्र में किया है कि भेद और संघातसे अचाक्षुष स्कन्ध चाक्षुष बनता है । सूक्ष्म स्कन्धसे कुछ अंशका भेद होने पर भी यदि उसने सूक्ष्मताका परित्याग नहीं किया है तो वह अचाक्षुषका अचाक्षुष ही बना रहेगा । सूक्ष्मपरिणत स्कन्ध भेद होने पर भी अन्य के संघात से सूक्ष्मताका त्याग करने पर और स्थूलताकी उत्पत्ति होनेपर चाक्षुप बनता है । प्रश्न- गति स्थिति अवगाह वर्तना शरीरादि और परस्परोकार के द्वारा जिन धर्म आदि का अनुमान किया गया है उन्हें पहिले 'द्रव्य' कहा है। तो उन्हें द्रव्य क्यों कहते हैं ? उत्तर-सत् होनेसे ।
SR No.022021
Book TitleTattvarth Varttikam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkalankadev, Mahendrakumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2009
Total Pages456
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Tattvartha Sutra
File Size16 MB
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