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________________ [ १७ ] ७६५ ७१५ ७६५ मूल पृ० हिन्दी पृ० मूल पृ० हिन्दी पृ० उपाध्यायका स्वरूप ६२३ ७८८ निदानरूप भार्तध्यान ६२८ ११ तपस्वीका स्वरूप ६२३ ७८८ आर्तध्यान प्रमत्तसंयत तक ६२६ ७१२ शैक्ष्यका स्वरूप ६२३ ७८८ निदानको छोड़कर शेष तीन बार्तध्यान ग्लानका स्वरूप ६२३ ७८८ प्रमत्त संयतके ६२६ ७६२ गएका स्वरूप ६२३ ७८८ रौद्रभ्यान अविरत और देशविरतके ६२६ ७१२ कुलका स्वरूप ६२३ ७८८ धम्यध्यान ।६३० ७१२ संघ--चतुर्वर्णश्रमणसमूह ६२३ ७८८ श्राशाविचय ६३० ७६२ साधु ६२३ ७८८ अपायविचय ६३० ७६२ मनोज्ञ ६२३ ७८८ विपाकविचय ६३० ७६३ असंयत सम्यग्दृष्टि भी मनोज्ञ ६२४ ७८% गुणस्थानोंमें उदय विचार ६३० ७६३ वैयावृत्त्यका प्रयोजन ६२४ ७८६ गुणस्थानोंमें उदीरणाविचार ६३१ ७६३ स्वाध्यायके भेद ६२४ ७८९ संस्थानविचय ६३२ ७६४ वाचना ६२४ ७८६ अनुप्रेक्षा और ध्यानमें भेद ६३२ ७६४ पृच्छना ६२४ ७८६ आदिके दो शुक्लभ्यान पूर्वविदोंके ६३२ ७६४ अनुप्रेक्षा ६२४ ७८६ अन्तिम दो शुक्लध्यान केवलियोंके ६३३ ७६५ श्राम्नाय ६२४ ७८९ चार प्रकारके शुक्लध्यान धर्मोपदेश ६२४ ७८६ योगकी रष्टिसे शुक्लध्यानोंके स्वामी ६३३ स्वाध्यायका प्रयोजन ६२४ ७८६ आदिके दो शुक्लध्यानपूर्व श्रुतज्ञानीके व्युत्सर्गके भेद ६२४ ७८ होते हैं और सवितर्कवीचार हैं ६३३ बाह्योपधि व्युत्सर्ग ६२४ ७८६ द्वितीय श्रुतज्ञान अवीचार ६३४ ७६५ श्राभ्यन्तरोपधि व्युत्सर्ग ६२४ ७८६ वितकका लक्षण ६३४ ७६५ वीचारका लक्षण ६३४ ७३५ व्युत्सर्गका अपरिग्रह महाव्रत त्यागधर्म पृथक्त्व वितर्क वीचार ६३४ ७६६ और प्रायश्चित्तान्तर्गत व्युत्सर्गसे भेद ६२५ ७८६ एकत्व वितर्क ६३४ ७६६ व्युत्सर्गका प्रजोजन ६२५ ७८६ सूक्ष्मक्रियाप्रतिपाति ६३५ ७६६ ध्यानका स्वरूप ६२५ ७६० समुच्छिन्नक्रियानिवर्ति ६३५ ७६६ चिन्तानिरोध ध्यानका स्वभाव ६२६ ७६० सम्यग्दृष्टि श्रादिके गुणश्रेणिनिरोध अभाव नहीं ६२६ ७६० निर्जराका क्रम ६३५ ७६६ श्वासोच्छ्रासका निरोध ध्यान नहीं ६२७ ७६१ सम्यग्दर्शनकी उत्पत्तिका क्रम ६३५ ७६७ समयको संख्या गिनना ध्यान नहीं ६२७ ७६१ वेदक सम्यग्दृष्टि ६३६ ७६७ चार प्रकारके ध्यान ६२७ ७६१ क्षायिक सम्यग्दृष्टि ६३६ ७६७ प्रार्तध्यान ६२७ ७६१ पुलाक आदि पाँच निर्ग्रन्थ ६३६ ७१७ रौद्रध्यान ६२७ ७६१ पुलाक ६३६ ७६७ धर्म्यध्यान ६२७ ७६१ वकुश ६३७ ७६७ शुक्लध्यान ६२७ ७६१ दो कुशील ६३६ ७६७ धम्य और शुक्लम्यान मोहके कारण ६२८ ११ निर्ग्रन्थ ६३६ ७६७ भनिष्ट संयोगज आतध्यान ६२८ ७६१ स्नातक ६३६ ७६७ इष्टवियोगज भासध्यान ६२८ ७११ पुलाक भादि में संयमश्रुत भाविकी वेदनानिमित्त भार्तध्यान १२८ ७६० रष्टिसे भेद . १३७ १८
SR No.022021
Book TitleTattvarth Varttikam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkalankadev, Mahendrakumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2009
Total Pages456
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Tattvartha Sutra
File Size16 MB
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