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________________ 52/श्री दान-प्रदीप चतुर पुरुषों में अग्रसर राजा तराजू के दो पलड़ों की तरह उन दोनों को समान दृष्टि से देखता था। एक बार प्रातःकाल राजा राजसभा में बैठा हुआ था। उसी समय प्रतिहार ने आकर विज्ञप्ति की-“कोई दूत द्वार के पास खड़ा है। वह आपके दर्शन करना चाहता है।" ___राजा ने उसे आने की अनुमति दी। प्रतिहार उस दूत को लेकर सभा में आया। उस दूत ने राजा को प्रणाम करके उनके हाथों में पत्र दिया। राजा ने उसे खोलकर इस प्रकार पढ़ा-“कल्याण व लक्ष्मी के स्थानरूप और स्वर्गनगरी के समान राजगृही नगरी में राजाओं के झुके हुए मस्तकों की माला द्वारा जिनके चरण-कमल पूजित हैं, ऐसे श्री जयन्त नामक पृथ्वीपति को गंगा के समीपस्थ देश में रहनेवाले सीमाड़ा की रक्षा करने में तत्पर कुरुदेवक नामक सेवक प्रणामपूर्वक मस्तक पर दोनों हाथ जोड़कर विज्ञप्ति करता है कि यहां आपके श्रीचरणों के प्रसाद से सब कुशल है। पर सीमाड़ा में सेवाल नामक राजा यमराज के समान भयंकर है। वह समृद्धि से मनोहर गाँवों में धाड़ मारकर लूटपाट कर रहा है। मदोन्मत्त हाथी जैसे वन में उपद्रव करता है, वैसे ही वह इस देश में उपद्रव कर रहा है। मैं अल्प बल व अल्प सैन्य से युक्त होने के कारण उसे रोकने में समर्थ नहीं हूं| अतः आप ही इस विषय में कोई उपाय करें।" इस प्रकार का लेख पढ़कर क्रोध से लाल नेत्रोंयुक्त राजा ने भृकुटि चढ़ाकर भयंकर मुख बनाते हुए सामन्त राजाओं से कहा-“हे सामन्तों! देखो! यह सोते हुए शेर को जगा रहा है, जो कि यह दुष्टबुद्धिवाला मेरे साथ विरोध कर रहा है। हे सुभटों! इसका निग्रह करने के लिए शीघ्र तैयार हो जाओ। व्याधि की तरह द्वेषी की भी क्षणमात्र भी उपेक्षा करना योग्य नहीं है।" इस प्रकार वेग से बोलते हुए और क्रोध से लाल हुए राजा को देखकर रणकुशल दोनों कुमारों ने राजा को प्रणाम करते हुए एक साथ कहा-“हे स्वामी! हमारे रहते हुए आपको इस युद्ध की तैयारी करने की क्या जरुरत है? सेवक के रहते हुए स्वामी को स्वयं प्रयास करना योग्य प्रतीत नहीं होता। 'जड़ की संगति से गर्विष्ठ बनी शैवाल पर आपके समान राजहंस को चढ़ाई करना योग्य नहीं है। अतः हे देव! उसका निग्रह करने के लिए हमें आज्ञा प्रदान कीजिए, जिससे उसके इस महान दुस्साहस को हम तत्काल खण्डित कर सकें।" यह सुनकर राजा ने मुख्य प्रधान पर दृष्टि डाली। तब निपुण प्रधान ने कहा-"राजपुत्रों का कथन यथार्थ है। ऐसे समयोचित वचन अन्य कौन कह सकता है?" ___ यह सुनकर राजा ने उसका निग्रह करने के लिए ज्येष्ठ पुत्र को आज्ञा प्रदान की। 1. इसका दूसरा अर्थ जल है। 2. इसका दूसरा अर्थ पानी पर होनवाली शैवाल यानि लीलन-फूलन है।
SR No.022019
Book TitleDanpradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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