SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 389
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 378/श्री दान-प्रदीप का निवास स्थान व्यापार ही है। कई मनुष्य कमल को लक्ष्मी का स्थान कहते हैं, वह तो मात्र रूढ़ि ही है। वहां मदन की क्रय-विक्रय करते हुए धनद के साथ मित्रता हो गयी, क्योंकि परदेश में गये हुए विद्वानों की महात्माओं के साथ मित्रता होना उचित ही है। फिर दोनों ने मित्रता रूपी लता के विलास मण्डप रूप इस प्रकार वाणी से प्रतिज्ञा की-"हम दोनों में से अगर एक को पुत्र और दूसरे को पुत्री होगी, तो हम उन दोनों का आपस में विवाह कर देंगे।" उसके बाद धनद पर प्रीति धारण करते हुए मदन कितने ही दिनों तक वहां रहा और अपना कार्य सिद्ध हो जाने के बाद उत्कण्ठापूर्वक अपने घर चला गया। धर्म, अर्थ और काम रूपी तीन पुरुषार्थों का बाधारहित सेवन करते हुए धनद को अनुक्रम से विनय से शोभित और बुद्धिमान सुधन नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। मदन के भी विनयादि गुणों से मनोहर मनोरमा नामक पुत्री उत्पन्न हुई। परस्पर संतति के जन्म को ज्ञात करके वे दोनों अत्यन्त आनन्दित हुए। अनुक्रम से सुधन ने स्त्रियों के प्राण रूपी यौवन को प्राप्त किया । तब मदन ने अपनी पुत्री का विवाह विशाल महोत्सवपूर्वक उसके साथ कर दिया। महापुरुषों ने जो अंगीकार किया हो, क्या वह अन्यथा हो सकता है? मदन ने आनन्दपूर्वक सुधन को उत्तम वस्त्राभूषणादि देकर उसका श्रेष्ठ सत्कार किया। उसके बाद सुधन भी श्वसुर की आज्ञा लेकर प्रिया के साथ अपनी नगरी में गया। उस ईभ्य पुत्र सुधन के सभी मनोरथ उसके पिता ने पूर्ण किये। अतः उसने अपनी प्रिया के साथ कितना ही समय विविध प्रकार के भोगों के द्वारा सुखमय व्यतीत किया। अनुक्रम से उसके पिता स्वर्ग सिधार गये। तब वह अत्यन्त शोकाकुल हो गया। उसने पिता की उत्तरक्रिया करके घर के भार को धारण किया। ___ कुछ समय बीतने के बाद उसके घर में से धनद के साथ ही मानो जा रही हो-इस प्रकार से लक्ष्मी धीरे-धीरे हानि को प्राप्त होने लगी। व्यापार के लिए चारों तरफ देशावरों के मार्ग में रही हुई उसकी लक्ष्मी को चोरों ने लूट लिया। वाहनों में रही हुई लक्ष्मी मानो प्रेमपूर्वक उसके पिता से मिलने की इच्छा कर रही हो-इस प्रकार से समुद्र में डूब गयी। उसके घर में रहा हुआ धन भी निरन्तर राजदण्ड और अग्नि आदि उपद्रवों से नाश को प्राप्त हो गया। अपने कर्म प्रतिकूल हो, तो क्या-क्या विपरीतता प्राप्त नहीं होती? उसके पिता के स्नान के लिए स्वर्ण का बाजोट और कुण्डी आदि थे तथा सोने, चाँदी और मणियों से निर्मित चार-चार कलश थे। एक दिन सुधन स्नान करने लगा। उस समय मानो दिव्य शक्ति से पंख लग गये हों-इस प्रकार वे कलश एक ही बार में शीघ्रता से आकाश में उड़ गये। उसी प्रकार स्वर्ण के बाजोटादि जितनी भी मूल्यवान वस्तुएँ थीं, वे सभी पक्षियों के समूह के समान उसके घर में से उसके देखते ही देखते एक साथ आकाश में उड़ गयीं।
SR No.022019
Book TitleDanpradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy