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________________ 307/श्री दान-प्रदीप प्रसन्न हुई। वे दोनों अपने स्वामी को एक ही जानकर परस्पर एक-दूसरे को बहन की दृष्टि से देखने लगी। फिर वह कुब्ज कहने लगा-"उसके बाद ससुर की आज्ञा लेकर कुमार प्रिया के साथ वाहन में बैठकर अपने नगर की ओर चला। एक बार मार्ग में रौद्र-परिणामी रुद्र मंत्री ने रत्नवती पर मोहित होकर कुमार को समुद्र में धक्का दे दिया। अब इसके आगे का वृत्तान्त कल कहूंगा।" ऐसा कहकर कुब्ज चुप हो गया और पुस्तक बांधने लगा। यह सुनकर रत्नवती तत्काल उठकर उसके पास आयी और धनवती सहित हाथ जोड़कर कहने लगी-"कृपा करके हमें बताइए कि समुद्र में गिरे हुए वे कुमार जीवित हैं या नहीं?" इसी अवसर पर रुद्र मंत्री ने विचार किया-"मेरे दुष्कर्म की चेष्टा को धिक्कार है। मेरा पूरा वृत्तान्त इस कुब्ज ने प्रकट कर दिया है। अब मैं क्या करूं? राजा के सामने इस कुब्ज को मारने और रत्नवती के साथ विवाह करने में तो अब मैं समर्थ नहीं हूं। रत्नवती के पूछने पर यह कुब्ज आगे की भी सारी हकीकत इसे कह देगा। उसे सुनकर क्रोधित राजा मेरा निग्रह करेगा। तो क्या मैं यहां से भाग जाऊँ? अथवा तो अभी यह सारा कौतुक देख लूं। फिर छिपकर वाहन में बैठकर यहां से भाग जाऊँगा।" ___फिर कुब्ज ने राजा से कहा-'हे राजा! इस दूसरी स्त्री को भी मैंने बोला दिया है। अब इस तीसरी को कल बुलवाऊँगा।" राजा ने कहा-“हे कलावान! इसको भी अभी ही बोला, क्योंकि आधी कथा सुनने से सभी का चित्त उत्कण्ठित है।" तब कुब्ज ने कहा-"जब कुमार को मंत्री ने समुद्र में गिराया, उसी समय किसी अदृश्य शक्ति ने उसे बचाकर आश्रम में पहुंचा दिया। वहां कुलपति की पुत्री रूपवती के साथ उसका विवाह हुआ। फिर खाट और कंथा के साथ कुमार रूपवती को लेकर इस नगर के उद्यान में आया। वहां रूपवती के लिए पानी लाने के लिए कुमार कुएँ के ऊपर गया, जहां एक सर्प ने उसे डस लिया। अब इसके आगे की कथा मैं कल सुनाऊँगा।" ऐसा कहकर कुब्ज मौन हो गया। अपने पति का वृत्तान्त सुनकर रूपवती भी हर्षित हुई। तीनों का एक ही पति जानकर वे तीनों परस्पर प्रीतियुक्त बनीं। पति की आपत्ति का श्रवण करके वे तीनों खेदयुक्त भी बनीं और तीनों ही उस कुब्ज से कहने लगीं-"प्रसन्न होकर कुमार के आगे का वृत्तान्त हमसे कहो।" ____ उन तीनों के द्वारा अत्यन्त प्रार्थना करने के बावजूद भी कुब्ज ने आगे की कथा नहीं सुनायी। पर उस बुद्धिनिधान ने विचार किया-"अहो! इनका पातिव्रत्य कैसा अद्भुत है! कि
SR No.022019
Book TitleDanpradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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