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________________ 238/श्री दान-प्रदीप उन्होंने जवाब दिया-"जिनके सहायकभूत आप जैसे राजा हों, उस राजा के राज्य में विघ्न पैदा करने में देव भी समर्थ नहीं होते। पर आपसे हम यह विज्ञप्ति करने आये है कि वीरसेन राजा की शृंगारसुन्दरी नामक पुत्री है। उसने अपने सौभाग्य के द्वारा देवांगनाओं को भी जीत लिया है। सरस्वती ने सजातीय होने के कारण मानो उसकी सहायता की हो-इस प्रकार से उसने समग्र कलाओं में कुशलता प्राप्त की है। उसके हृदय के द्वारा त्याग की हुई कुटिलता ने उसके केशों का आश्रय ले लिया है। केशों के द्वारा त्याग की हुई तुच्छता (पतलापन) ने उसके मध्यभाग (उदर) का आश्रय ले लिया है। उदर के द्वारा तजी हुई विशालता उसके दोनों नेत्रों में आकर रही हुई है। नेत्रों द्वारा त्याग की हुई सूक्ष्मता उसकी मति में आकर ठहर गयी है। मति के द्वारा त्यागी हुई वक्रता ने उसकी भुजाओं का आश्रय ले लिया है। भुजाओं के द्वारा त्यागी हुई सरलता ने उसकी नासिका का आश्रय लिया है। मैं ऐसा मानता हूं कि सर्वोत्तम से भी सर्वोत्तम स्त्रियोचित परमाणुओं के द्वारा विधाता ने उसकी रचना की है और शेष रहे हुए परमाणुओं के द्वारा अन्य देवांगनाओं को बनाया है। एक बार राजा ने उसे पाणिग्रहण योग्य देखकर विचार किया कि इस अनुपम रूप-गुण से युक्त कन्या के योग्य कौनसा वर होगा? ऐसा विचार करके उन्होंने प्रधानमंत्रियों से पूछा, तो उन्होंने कहा-'हे देव! यह कन्या तो साक्षात् स्वर्ग से उतरी हुई देवी से भी ज्यादा सुन्दर और गुणसंपन्न है। अतः ऐसे तो इसके योग्य वर मिलना मुश्किल है। दमयन्ती के सामन इसके लिए स्वयंवर करना ही उचित होगा, क्योंकि स्वयंवर में अनेक देश के राजा व राजकुमार एकत्रित होंगे, जिससे कदाचित् आपकी पुत्री के लिए कोई सुयोग्य वर मिल जाय। यह सुनकर राजा को उनका कथन उचित लगा और स्वयंवर का आयोजन करके सभी जगहों से युवा राजाओं और राजकुमारों को बुलवाया है। उन सभी के रहने के लिए नगर के चारों तरफ जनवास की तरह अद्भुत सैकड़ों आवास तैयार करवाये हैं। उनमें चावल, दाल घी, तेल, जल और घासादि का समूह तैयार करके रखवाया है। बुद्धिमान पुरुष उचित करने में सावधान क्यों नहीं होंगे? __ आपको भी बुला लाने के लिए राजा ने हमें यहां भेजा है। अतः आप शीघ्रतापूर्वक वहां पधारें।" यह सुनकर विनयपाल राजा ने सुन्दर व विचारयुक्त वाणी के माध्यम से कहा-"अहो! वृद्धि प्राप्त प्रीति के द्वारा वीरसेन राजा ने हमें आमन्त्रित किया है, पर यह अयोग्य है, क्योंकि हम जैसे वृद्धों का वहां आने का अवसर नहीं है। ऐसे लग्न–प्रसंगों में तो दूसरी वयवाले (युवावस्थावाले) लोगों की ही योग्यता घटित होती है। हम जैसे तीसरी वयवालों के
SR No.022019
Book TitleDanpradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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