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________________ 185/श्री दान-प्रदीप लिए कहा। प्रातःकाल होने पर उसकी पत्नी उस चम्मच को लेकर बाजार में पहुँची । ग्राहकों ने उससे उस चम्मच के भाव पूछे। उसने कहा-"जो पुरुष पूरा एक लाख द्रव्य मुझे प्रदान करेगा, मैं उसे ही यह बेचूंगी।" यह सुनकर बिना विचारे उन ग्राहकों ने उसकी हँसी करते हुए कहा-"अगर लाख लेने की तेरी इच्छा है, तो पीपल के पास जा। वहां अत्यधिक लाख होता है।" कुछ चतुर पुरुषों ने उससे पूछा-“हे भद्रे! एक चम्मच का इतना अधिक द्रव्य क्यों बता रही हो?" उसने कहा-"इसका प्रभाव सावधान होकर सुनो-इस चम्मच से परोसी हुई वस्तु कभी भी कम नहीं होगी। अतः इसका लाख द्रव्य का मूल्य तो अत्यन्त कम है। हे मनुष्यों! मैं तो गुणों का ही मूल्य बता रही हूं। काष्ठ का मूल्य नही बता रही हूं। कल्पलता भी तो काष्ठ की ही होती है। क्या वह अमूल्य नहीं है?" इस प्रकार उसके द्वारा गुणों का उत्कर्ष बताये जाने पर भी अविश्वास के चलते कोई भी उसके चम्मच का खरीददार नहीं मिला । अहो! अविश्वास के विलास को धिक्कार है! जो पुरुष किसी वस्तु के वास्तविक गुण को नहीं देख पाता, वह उसमें आदरयुक्त भी नहीं होता, क्योंकि द्राक्षा स्वादिष्ट होती है, पर फिर भी ऊँट उसके सामने देखता भी नहीं। अंत में राजा का प्रधानमंत्री सायंकाल के समय उसके सामने से निकला। उसने उस चम्मच के बारे में पूछा, तो उसने भी पूर्ववत् जवाब दिया। यह सुनकर उसने विचार किया कि मणि, मंत्र और औषधि की महिमा का वर्णन वाणी से करना अशक्य है। पृथ्वी तो बहुरत्ना है। अतः विचक्षण मंत्री ने अपनी बातों से उसे विश्वास दिलाकर उससे वह चम्मच ले लिया। फिर अपने घर जाकर रात्रि के समय उसे किसी चाँदी के पाट पर स्थापित करके कपूर, पुष्पादि सामग्री के द्वारा उसकी पूजा करके वह निपुण मंत्री सो गया। प्रातःकाल उठने के बाद उसने उस चम्मच के द्वारा जो-जो वस्तु परोसी, वह चक्रवर्ती के निधान की तरह अक्षय हो गयी। इस प्रकार उस चम्मच के गुणों के उत्कर्ष को देखकर मंत्री को प्रतीति उत्पन्न हुई। उसने रथकार के घर एक लाख द्रव्य भिजवा दिया। फिर प्रधान राजा के पास गया और रथकार के उस निर्माण की रचनापूर्वक वृत्तान्त बताकर वह चम्मच राजा को दिखाया। प्रधान दीर्घ दृष्टि से ही युक्त होते हैं। सारी बात सुनकर राजा ने आश्चर्यचकित होते हुए उस चम्मच की परीक्षा की और यथार्थता को देखकर हर्ष को प्राप्त हुआ। राजा ने उस चम्मच को अपने कोष में स्थापित किया। कल्पलता को कौन छोड़ता है? वह कारीगर फिर किसी ऐसी वस्तु की रचना करे, तो तुम मुझे अवश्य बताना-ऐसा राजा ने मंत्री से कहा। फिर कोशाधिकारी से एक लाख द्रव्य मंत्री को दिलवाया।
SR No.022019
Book TitleDanpradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages416
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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